मानवता संरक्षण का अस्त्र : अहिंसा (अन्तिम भाग # ५ ) | The War of Humanitarian Conservation : Non-violence (Final Part # 5)
मानवता संरक्षण का अस्त्र : अहिंसा (अन्तिम भाग # ५ ) | The War of Humanitarian Conservation : Non-violence (Final Part # 5)
हिंसा से होता क्या है ? हिंसा से हिंसा ही बढती है । वैरभाव बढ़ता है । अशान्ति बढती है । हिंसा प्राणी को चतुर्गती रूप संसार में परिभ्रमण कराती रहती है जबकि अहिंसा उसे मुक्ति के पथ पर ले जाती है । कोई अज्ञानवश थोड़े से समय विशेष के लिए हिंसा का आधार लेकर भ्रमित होकर विचार कर सकता है कि वह विजयी हुआ अथवा उसे कुछ लाभ हुआ किन्तु अन्त में विचार असत्य ही सिद्ध होगा ।
जो भी प्राणी क्षणिक सुख की लालसा से किसी अन्य प्राणी को कष्ट पहुंचाता है, उसका नाश करता है उसे फिर घोर कष्ट पाना पड़ता है, चिरकाल पर्यन्त नारकीय दु:खों का भोग करना पड़ता है ।
अहिंसा का समर्थन प्रत्येक धर्म में किसी न किसी रूप में किया ही गया है । जैन धर्म तो है ही अहिंसा पर आधारित । अहिंसा पर बहुत से बड़े- बड़े लोगों ने कई कथन कहे है और उनका पर्याय यही है कि मानव को किसी भी रूप में हिंसा से दूर रहना चाहिए तथा अहिंसक बनना चाहिए ।
वर्तमान काल बड़ा कठिन काल है । आज धर्म का लोप होता दिखाई देता है । मनुष्य स्वार्थान्ध होकर अन्धी दौड़ में पड़ा है । एक देश दुसरे देश को हड़प जाना चाहता है । यद्ध के बड़े भीषण, विनाशकारी शस्त्रों का निर्माण हो चूका है । भूल से भी यदि वे फूट पड़ें तो पृथ्वी का अन्त हो सकता है, मानवता लुप्त हो सकती है ।
इसी स्थिति में जैन दर्शन की अहिंसा ही एकमात्र वह आधार बन सकती है जो विश्व की रक्षा कर सके । समय रहते इस तथ्य को संसार की महाशक्तियों को स्वीकार कर लेना चाहिए ।
तथा –
o सब प्राणियों को अपना जीवन प्यारा है ।
o सुख सबको अच्छा लगता है और दुःख बुरा ।
o वध सबको अप्रिय है और जीवन प्रिय ।
o सब ही प्राणी जीना चाहते है ।
o कुछ भी हो जीवन सबको प्रिय है ।
o अत: किसी भी प्राणी की हिंसा न करो ।
शस्त्र एक से बढ़कर एक है परन्तु अशस्त्र (अहिंसा) एक से एक बढ़कर नहीं है । अर्थात् अहिंसा की साधना से बढ़कर श्रेष्ठ कोई दूसरी साधना नहीं है । यह मानवता के संरक्षण का अमोघ अस्त्र है ।
इससे जुड़ी पिछली चार पोस्टों का जुड़ाव है (the link of last four parts of this topic are) -
- https://steemit.com/life/@mehta/or-the-war-of-humanitarian-conservation-non-violence-part-1
- https://steemit.com/life/@mehta/or-the-war-of-humanitarian-conservation-non-violence-part-2
- https://steemit.com/life/@mehta/or-the-war-of-humanitarian-conservation-non-violence-part-3
- https://steemit.com/life/@mehta/or-the-war-of-humanitarian-conservation-non-violence-part-4
The English language translation from help of Google language tool as below:
Talk further with the last four posts -
What happens to violence? Violence only increases violence. Oppression grows. Unrest increases. Violence causes the creature to revolve around the world in a fourfold way, while non-violence leads to the path of liberation. Anyone who is ignorant for a little while can get confused with the basis of violence for a particular person, whether he has won or has some benefit, but in the end the idea is untrue.
Any creature who harbors any other creature with longing for transient pleasures, destroys it, then he has to suffer terribly, he has to suffer the consequences of eternal hellfire.
Non-violence has been supported in some form in every religion. Jainism is based on non-violence. Many big people on non-violence say many statements and their alternative is that human beings must stay away from violence in any form and should become non-violent.
The present tense is a tough time. Today the disappearance of religion appears. Man has been in the race for selfish ends. One country wants to grab another country. The massive gruesome, destructive weapons of the war have been created. Even if they break down, then the earth may end, humanity may be lost.
In this situation, non-violence of Jain philosophy can become the only basis that can protect the world. This fact should be accepted by the great powers of the world.
And -
o All creatures love their life.
o Happiness and everyone feels bad.
o Slaughter is unpleasant and dear to life.
o All creatures want to live.
o Whatever life is dear to everyone.
o So do not violence of any creature.
@mehta yes,true.there is no bigger weapon than non-violence.Only through this there can be peace between two countries and among human.thanks for sharing.
छल- कपट, द्वेष, हिंसा, को बढ़ता देख 'वो' बेबस दूर खड़ी हो रही है।
अपने अस्तित्व की गुहार लगाती 'इंसानियत' धीरे धीरे लुप्त हो रही है।
@mehta
अहिंसा प्रेम के रास्ते के प्रति पूर्ण प्रतिबद्धता है। प्यार भावनात्मक बाश नहीं है; यह खाली भावनात्मकता नहीं है। यह किसी के होने के नाते पूरी तरह से सक्रिय होने का सक्रिय रूप है।
आपकी बातों से पूर्ण रूप से सहमत कहूँ तो ऐसा नहीं है . अहिंसा परमो धर्म . सही है .मनुष्य को जीवन में अहिंसा अपनाने से ही लाभ है और जीवन शांतिप्रिय गुजरा जा सकता है . परन्तु जैसे जैन धर्म में पेड़ों को भी जीवित मन गया है तो अगर मनुष्य उस स्तर तक अहिंसा का पालन करेगा तो खायेगा क्या , प्रक्रति में संतुलन भी जरुरी है . आपके कथन से मैं सहमत हूँ ......
मुझे लगता है आप थोड़े असमंजस में है. आप को कहीं तो एक रेखा (लक्ष्मण रेखा) तो खीचनी ही पड़ेगी, पर कहां ये आप पर निर्भर करता है. आप मांस, अंडा, मछली, दूध व पौधों से प्राप्त चीजों में अन्तर तो कर ही सकते है कि क्या कम अहिंसक है अपने जीवन यापन के लिए.
एकेन्द्रिय व पंचेन्द्रिय जीव की हिंसा में अन्तर तो है ही. आप किसी मनुष्य को चिंटी काटे या उसका क़त्ल ही कर दे, इन दोनों बातो में बड़ा अन्तर है. ये सब बातें एक जैसी बात नहीं है.
भाइयों मानो या ना मानो इस सृस्टि को अब विनाश की आवश्यकता है। क्योंकि देश दुनिया में जो पाप हो रहे हैं वो सब अब अपनी हद पर हैं....
आज का युग पैसे का युग है, जिसके लिए लोग कुछ भी कर सकते है अहिंसा के लिए उसके पास कोई स्थान नहीं है.
आपकी बात कुछ हद तक, आज दे हिसाब से ठीक है परन्तु आज भी ऐसे लोग है जो अहिंसा को महत्त्व देते है. इसलिए ही दुनिया चल रही है नहीं तो सब ख़त्म हो गए होते.
मेहता सर् आप भी बिलकुल ठीक कह रहे है,पर मेरा मानना है कि जो लोग आज के समय मे अहिंसा को मानते
और अपने जीवन मे आजमाते है उनको लोग अकसर कमजोर समझते है,क्योकि इस तरह की चीजो को मैने खुद अनुभव किया है , तो अब आपको इसके बारे में क्या कहना है
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Bahut hi uttam vichar hai mehta saheb. Isi tarah lage rahiye. Aapke gyanvardhak post padhkar dil khush ho jata hai.
Very true non violence can lead to better people and better place to live in , with this subject we got independence for our country , I agree with you
Ahimsa Parmo Dharam