सुख : स्वरूप और चिन्तन (भाग # ३) | Happiness : Nature and Thought (Part # 3)

in #life6 years ago

सुख : स्वरूप और चिन्तन (भाग # ३) | Happiness : Nature and Thought (Part # 3)

पिछली दो पोस्ट से आगे बढ़ते हुए हम सुख पर एक उदाहरण से समझने का प्रयत्न करते हैं ।

तत्व ज्ञान के अभाव में मनुष्य कितने भ्रम में पड़ा रहता है तथा कैसा अभिमान करने लगता है इसका उदाहरण घनश्यामदास बिड़ला के एक संस्मरण से प्रकट होता है ।
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“मुझे प्रात:काल घुमने की आदत है । प्रात:काल का शुद्ध पवन मनुष्य को नव जीवन प्रदान करता है । अस्तु, एक दिन मैं भ्रमण हेतु निकला । वायु की परमार्थ वृत्ति पर मैं विचार करने लगा, यह वायु कितना परिश्रम करती है ? न जाने कितने हजार मील दूर से उड़ती चली आती है, पशु-पक्षी, वृक्ष-लता, मनुष्यों को जीवनदान देती है । अथक प्रवाहित रहती है । कभी विराम नहीं लेती और सबसे बड़ी बात तो यह कि इस परोपकार के बदले में कभी किसी से कुछ चाहती भी नहीं ।”

यह विचार करके मैंने हवा से कहा – “हे वायु ! तुम इतना परोपकार करती हो किन्तु कभी तुमने अपने इस कृत्य को
किसी अख़बार में क्यों नहीं छपाया ?”

हवा ने पूछा – “कौन-सा अख़बार अच्छा है ? किसमें सुचना दूं ?”

“हिंदी, अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओँ में बहुत से अच्छे अख़बार हैं ।” मैंने उत्तर दिया ।

हवा ने पूछा – “क्या चन्द्र लोक, सूर्य लोक तथा अन्य अनेक ग्रह नक्षत्रों में भी तुम्हारे अख़बार पहुंचते हैं ?”

“नहीं, वहां तो नहीं पहुंचते ।” मैंने लज्जित होते हुए कहा ।

हवा हास्य करते हुए बोली – “मनुष्य ! तू सचमुच कूप-मंडूक है । अपनी छोटी-सी पृथ्वी को ही सारी सृष्टि मान बैठा है और अभिमान के शिखर पर चढ़ गया है । अरे, मेरा तो व्रत है प्राणिमात्र की सेवा । मेरा अख़बार है ईश्वरीय ह्रदय । सारी ख़बरें वहां स्वयं ही पहुंच जाती हैं, अच्छी भी बुरी भी । अस्तु मैं तो निस्वार्थ भाव से सेवा करती हूँ, तू भी मेरा अनुसरण कर, तुझे सच्चा सुख प्राप्त होगा ।”

यह कहते हुए हवा तो सरसराती हुई अपनी सेवा तथा त्याग के पुण्य पथ पर आगे बढ़ गई किन्तु मैं क्रोध में भरा हुआ वहीं खड़ा रह गया । मेरी इच्छा थी कि हवा को एक अच्छा-खासा उपदेश दे डालूं किन्तु उसे तो, ‘लगन लगी पद पावन की’ उसे मेरा उपदेश सुनने की फुरसत कहां थी ? वह तो ‘कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम’ गाती-गाती आगे चली गई थी ।

मैं खीझता हुआ आगे बढ़ा और अपना क्रोध मैंने एक ऊंट पर निकलना चाहा । बात यह हुई कि मार्ग में एक ऊंट अपनी थकान मिटाने के लिए धूल में लोट-पॉट हो रहा था । धुल उड़ रही थी । मैंने क्रोध से कहा – “अरे ऊंट ! तू गंवार ही रहा । हम इस रास्ते से गुजरते हैं तो लोग हमारा आदर करते हैं, हमें प्रणाम करते हैं । सो प्रणाम करना तो दूर, तू उल्टा हम पर धूल उड़ाता है ।”

यह सुनकर ऊंट ने अपना व्यायाम तो बंद कर दिया किन्तु खड़खड़ाकर हँसता हुआ बोला – “महाशय ! आप तो मुर्ख तो हैं ही, अभिमानी भी हैं । अभी आप हवा को उपदेश देने की घृष्टता करना चाहते थे । हवा तो आदर्श सेवक है, ईश्वर-भक्त है, उसने आपको कुछ नहीं कहा । किन्तु मुझे उपदेश देने को कोशिश न करिएगा । संक्षेप में इतना ही जान लीजिए कि आप मुझ से भी अधिक नीच हैं ।”

मैंने कहा – “अरे ऊंट ! तू पशु होकर मनुष्य को उपदेश देना चाहता है ? मुझे तेरी बुद्धि पर दया आती है ।”

ऊंट की मुखाकृति गंभीर हो गई । उसके नथुने फड़कने लगे, आँखों में तेज चमकने लगा । वह बोला – “क्या केवल मनुष्य देह प्राप्त कर लेने से ही मनुष्य स्वयं को मनुष्य कहलाने का अधिकारी हो जाता है ? यदि तू ऐसा समझता है तो तेरी बुद्धि को धिक्कार है ।”

पिछली तो पोस्ट का जुडाव है -
१. https://steemit.com/life/@mehta/or-happiness-nature-and-thought-part-1
२. https://steemitcom/life/@mehta/or-happiness-nature-and-thought-part-2

The English translation of this post with the help of google tool as below:

Moving forward from the previous two posts, we try to understand the pleasures with an example.

In the absence of elemental knowledge, how many confusions of man are confused and how proud it is that an example of this is manifested by a memoir of Ghanshyamadas Birla.

"I have a habit of walking past the morning. The pure wind of the morning gives new life to man. Oh, one day I went out for the trip. I began to think about the absolutism of air, how much work does this air do? Do not know how many thousand miles fly away, animals, birds, trees and trees give life to humans. Tireless flows Never takes a break, and the biggest thing is that in return for this charity, nobody ever wants anything. "

By thinking of this I said to the wind - "O wind! You do so much philanthropy but sometimes you have done this act
Why not print in a newspaper? "

Air asked - "Which newspaper is good? What can I suggest? "

"There are many good newspapers in Hindi, English and other languages." I replied.

The wind asked - "Do you reach your newspaper in Chandra Lok, Surya Lok and many other planets?"

"No, they do not reach there." I said ashamed.

Winding humorous quote - "Man! You really have a pipe box. His small planet is considered as the whole creation and has climbed to the summit of pride. Hey, my fast is the service of the world. My newspaper is God's heart. All the news goes there itself, good and bad too. I serve myself with selflessness, you will follow me, and you will get true happiness. "

While saying this, the wind blazes on the path of service and renunciation of sacrifice, but I remained standing in anger. I wish that I should give a good message to the wind, but then, 'The passion for the post was made' where was the time to listen to my preaching? He went on to sing 'Kamayy Dukhataptananan Pranninaratinathnam'.

I grew upset and wanted to get my anger on one camel. It was a matter of fact that a camel in the path was getting lotus-pot in the dust to get rid of its fatigue. Was washed away I said in anger - "Hey camel! You're always bored. When we pass through this path, then people respect us and bow down to us. So away from reverence, you uproot the dust on us. "

Upon hearing this, the camel stopped his exercise but said, laughing rubbing - "sir! You are a fool, you are arrogant. Right now you wanted to be proud of preaching the wind. Air is the ideal servant, God is a devotee, he did not tell you anything. But do not try to preach to me. In a nutshell, know that you are even more subdued than me. "

I said - "Hey camel! Do you want to teach a man as a beast? I love your wisdom. "

The camel's face became serious His nostrils started fluttering, eyes started shining brightly. He said, "Does man possess himself to be called a man only after acquiring body only? If you think so, then your intellect is damned. "

इससे आगे का अंतिम भाग अगली पोस्ट में । (The final part of this happiness post in next coming post)

सुख की Steeming

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This is really very useful and beneficial for anyone in the real world, namely: Love. affection has a very close relationship in achieving happiness. success always ... @mehta.

खुशी की सच्ची अनुभूति तो तब होती है जब आप किसी और और के चेहरे पर मुस्कान का कारण बनते है। ऐसी खुशी का कोई मोल नहीं।

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बिल्कुल सही कहा आपने.

इस तरह से शुद्ध करने और परिष्कृत करने के लिए उपयोग की जाने वाली प्रक्रिया को देखना मुश्किल है। विचार की धारा - वह धारा जो हमारे मनोवैज्ञानिक संयंत्र के चक्र को अंततः बदल देती है - इस तथ्य के बावजूद कि प्रक्रिया थोड़ी देर बाद ली जाती है, हमारे नियंत्रण के बजाय, इतनी कठोर हो जाती है। किसी भी मामले में, यदि आंतरिक दृष्टि की सीमा तक पहुंचाया जाता है, तो संपूर्ण मनोवैज्ञानिक स्टोर उनके निश्चित औसत के लिए प्रस्तुत किया जाता है, पूरी प्रकृति पूरी तरह से हिल जाती है और इसकी भरोसेमंदता में मिश्रित होती है। व्यक्ति ने खुद को विशाल प्राथमिकताओं को लाया है, जो एक दूसरे के पास जाएंगे और जो पृथ्वी को उकसाएंगे और दूसरे जीवन की शुरुआत की ओर देखेंगे।

बहुत सुंदर संस्मरण सुनाया आपने ,वैसे अलग अलग व्यक्ति की सुख की सोच अलग अलग है एवं जैसे जैसे आयु बढ़ती है सुख की परिभाषा बदलती रहती है ।

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अगर जीवन में कभी आपको अच्छे काम करने का मन हो तो हमेशा उस काम को तुरंत कर लो बिना समय व्यर्थ किये , क्यूंकि अगर अच्छे काम करने का मौका आपको किस्मत दे रही है तो उस मोके को कभी नहीं गवाना चाहिए , और अगर आप अच्छे काम के लिए आज की बजाये कल डाल दोगे तो वो कल कभी नहीं आएगी।

निस्वार्थ से सेवा करना और सभी को एक समान नजर से देखना ,तभी हमें सच्ची ख़ुशी मिल सकती है.

सभी पार्टो में सुख की अच्छी परिभाषा दी गई है।।।।
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।।।।।

@mehta No,I dont think man possess himself to be called a man only after acquiring body only.He is called man beacause he is having intellectual brain which separates him from Animals.

animals also have intellectual brain but with limits

Hello @mehta
Ji

Apne kaya bat kahi hain.... Sansar to khusion sei hi bana hain.. sitri ke har kan Anand se hi bani hai isliye Parmatma ko Sachidananda kaha jata hain.. Sat chit and Anand --- Jo bakti Hamesh kush hain wahi wahi satri kar sakta hain....

Dahnyabad @mehta ji for another superb post

thanks for this article

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