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सिपाही महिपाल सरकारी नौकर था या व्यक्तिगत, ?
जज की सुरक्षा में तैनाती थी या परिवार को बाजार घुमाने की, ?
बेटे की प्राणघातक बीमारी पर उसे भी छुट्टी का हक था,?
पहले मिसेज और बेटे को बाजार करवा लाओ छुट्टी की बात बाद में,
जितनी तुम्हारी तनख्वाह है उतना हमारे कुत्ते का खर्च है (सनद रहे लखनऊ में एप्पल अधिकारी की पत्नी कल्पना तिवारी ने भी उस सिपाही को यही कहा था)
तुम्हारा बेटा तो मर गया अब कर लो अपनी नौकरी पूरी,
उसके बाद ही कुछ गोलियां चलीं,
इंसाफ का हकदार सिपाही भी है जज साब..
मैं पूछता हूं लोकतंत्र और कानून की इस सडी गली व्यवस्था से सबको आजादी कब मिलेगी ?