'कोई विकल्प नहीं है तुम्हारे अपनेपन से भरे स्पर्श का| लेकिन खुले में धीमी .........
'कोई विकल्प नहीं है तुम्हारे अपनेपन से भरे स्पर्श का| लेकिन खुले में धीमी हवा को छूते हुए बीत ही जाती हैं बसंत की शामें|
'कोई विकल्प नहीं है तुम्हारे अपनेपन से भरे स्पर्श का| लेकिन खुले में धीमी हवा को छूते हुए बीत ही जाती हैं बसंत की शामें|