विज्ञान व्रत की ग़ज़ल: बस अपना ही ग़म देखा है
बस अपना ही गम देखा है।
तूने कितना कम देखा है।
उसको भी गर रोते देखा
पत्थर को शबनम देखा है।
उन शाखों पर फल भी होंगे
जिनको तूने खम देखा है।
खुद को ही पहचान न पाया
जब अपना अल्बम देखा है।
हर मौसम बेमौसम जैसे
जाने क्या मौसम देखा है।