शोक से मुक्ति ~ 2 Freedom from grief ~ 2
जैसा कि हम पूर्व अध्यायों में जान चुके, कि हमारे शोक का प्रमुख कारण हमारे द्वारा हो रहे कर्मो का परिणाम होता हैं।
कर्मफल एक तो मनुष्य शरीर को यहां रहते हुए प्रभावित करते हैं, दूसरा यहां से मृत्यु को प्राप्त हो जाने के बाद आत्मा को भोगने पड़ते हैं।
अगले जन्म में आत्मा जब दूसरा शरीर धारण करती हैं, तो अच्छे कर्मों का अच्छा कर्मफल ओर बुरे कर्मो का बुरा फल प्राप्त होता हैं, यहां तक कि किस योनि में जन्म लेना हैं, ये भी कर्मफल के आधार पर ही निर्धारित होता हैं।
मनुष्य शरीर में रहते हुए निर्वहन के लिए सभी प्रकार के कर्म हमसे हो ही जाते हैं, क्या किया जाय कि हम कर्मो के बंधन से मुक्त हो जाये और यहां हुए कर्म यही पर समाप्त हो जाये।
इसका बहुत आसान सा उपाय मद्भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण ने बताया हैं।
1- कर्मो के तत्व को जानना।
2- तत्वज्ञान को प्राप्त करना।
1- कर्म सिर्फ निर्वहन के लिए हो, कर्मो के करने में कर्तापन का अभिमान न हो, और कर्मफल ( परिणाम ) में आसक्ति न हो, तो कर्मो के बंधन से मुक्ति सम्भव हैं। हमारे कर्म संकल्प और आसक्ति से रहित हो तो हमारे द्वारा होने वाले कर्मो के बंधन यहीं पर खत्म हो जाते हैं। क्योंकि हमारे द्वारा होने वाले कर्म हमारी इच्छा से हो ही नही रहे हैं, ये सब पूर्व निर्धारित हैं, पर जब हम ये कहते हैं, कि ये काम देखो मैंने कितनी चतुराई से किया, बस बन्ध गए। और ये बोला या अनुभूत किया, कि इस कर्म को करने में भगवान ने मुझे माध्यम चुना, जो हुआ प्रभु की मर्जी से हुआ। बस हो गई बन्धन से मुक्ति।
2 - जड़ता से सर्वथा सम्बन्ध विच्छेद ही तत्व ज्ञान हैं। जैसे ही जड़ता से सम्बन्ध टूटेगा, मोह नष्ट हो जाएगा।
मैं वो नही हूँ, जो दिखता हूँ। मैं ये शरीर नही आत्मा हूँ, परमात्मा का स्वरूप हूँ, सम्पूर्ण सृष्टि मेरा परिवार हैं, प्रत्येक जीवात्मा परमात्मा का स्वरूप हैं, कोई मेरा दुश्मन नही, कोई मेरा सखा नही।सभी का एक सा स्वरूप हैं।
सम भाव दृष्टिगत हो जाये, यही तत्वज्ञान हैं।
ॐ शांति, शांति, शांति
As we have learned in earlier chapters, the main reason for our grief is the result of our deeds.
Karmalas affect one's body while living here; secondly, after death is attained, the soul has to suffer.
In the next life, when the soul holds the second body, good deeds of good deeds and bad deeds are obtained, even in what vaginal birth, it is determined only on the basis of karmic.
While living in the body, all kinds of actions are done for us to discharge, what should be done that we become free from the bondage of karmas and the actions that have taken place here end.
Its a very easy solution to this, in the Goddess Bhagwan Shri Krishna, in the Bhagavad Gita.
1- Knowing the element of karmo
2- Getting philosophy.
1- The action is only for discharge, do not have the pride of doing karma in doing karma, and if there is no attachment in karmal (result), then liberation from the bondage of karma is possible. If our karmas are devoid of resolution and attachment, then the bonds of karma that are performed by us end there. Because the deeds done by us are not being done by our wishes, all of them are predetermined, but when we say this, look at this work, how cleverly I have done, we have just been tied up. And it was said or done, that God chose me as the medium in doing this work, which was done by the will of the Lord. Just got freed from the fastening
2 - The separation of rootstock from inertia is elemental knowledge only. As soon as the relation with inertia will be broken, the attachment will be destroyed.
I'm not the one who looks. I am not the body, I am the soul, the nature of God, the whole creation is my family, every living soul is the form of God, no one is my enemy, no one is my friends. Everyone has a different form.
Equal feelings should be visible, this is the philosophy.
oum shanti
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आपका ~ indianculture1
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