सावन
चलो आओ सखि उस पार चले,
सावन रहा बुलाए।
रिमझिमम बरसे मेघा
मन बहका बहका जाए।।
अम्बुआ की डाल पे कोयल
मीठा राग सुनाय,
दादुर,मोर पपीहा
कोई वाद्य यन्त्र बजाए।
मन करता है बगियन में
अब झूला ले डलवाए ।।
पिया परदेश गए है
ये सोच के मैं घबराऊँ,
जाने कब आना होगा
मन ही मन मैं डर जाऊँ।
उनके आने की टोह में
कहीं सावन ना ढल जाए ।।
काले-काले मेघा
अम्बर पर घिर-घिर आए,
घटा ने जूडा खोला
सखि पानी टपका जाए।
पेंग बढा नभ छू लू
सखि जियरा रहा ललचाय ।।
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