आस्तिकता यां नास्तिकता
आस्तिकता यां नास्तिकता किसी अदृष्य ईश्वरके अस्तित्वपर निर्भर नही होती । ईश्वर किसीने देखा नही , मैनेभी नही देखा। क्योंकि ईश्वर कोई वस्तु नही की हम दिखा सकते है । ईस ब्रम्हांडका सुव्यवस्थित सुनियंत्रित संचालन करनेवाली अदृष्य अज्ञात व्यवस्थाको ईश्वर कहा जाता है । अगर किसीको ईश्वर नाम पसंत नही तब वह कोईभी नाम दे सकता है या नही दे सकता है । क्योंकि ईश्वर दृष्यमान नही है । लेकिन, प्रकृती दृष्यमान है, हमारे सामने साक्षात खडी है । मानव निर्मितीके करोडो साल पहले प्रकृतीकी निर्मिती हुई यह वैज्ञानिक सत्य है । मतलब, प्रकृतीकी निर्मिती मानवने नही कियी यहभी सत्य है । फीर किसने कियी ? सिद्धांत है की हर कार्यके पिछे कर्ता होता है । प्रकृतीकी निर्मिती करनेवाले अदृष्य कर्ताको कुछ लोग ईश्वर कहते है, कुछ लोग ईश्वर नही कहते , महाशक्ती कहते है यां कुछ लोग अपने आप ईसकी निर्मिती हुई है यह सिद्धांत रखते है । यह जो अलग अलग दावे किये जाते है वे केवल अनुमान है । कहने दिजीए , हमारा क्या जाता है ? एक सत्य तो सब स्वीकारते है की प्रकृतीकी निर्मिती मानवने नही कियी । घने जंगल प्रकृती है, और वहाॅ बिना मानवीय उपस्थिती और सहायता पेड पौधोंको अनगिनत फल लगते है । ईन पेड पौधोमे किसीभी खाद्यतत्वकी कोई कमी नही है । अर्थात मिल गये । मानवने नही दिये! फीर किसने दिये ? देनेवालेको कोई कुछभी नाम दे, वास्तविकता बदलती है क्यां ? ईस मानवरहित व्यवस्थाको स्वीकारनेवालोंको मै आस्तिक कहता हूॅ और न स्वीकारनेवालोंको मै नास्तिक कहता हूॅ। ये बुद्धीजीवी ईस व्यवस्थाको नकारते है ईसलिये मै उन्हे नास्तिक कहता हूॅ, चाहे कोई माने न माने । जो मानते है उनका ईस जन आंदोलनमे सहर्ष स्वागत है । जो नही मानते, उनको मनानेमे हमारी उर्जा हम बरबाद नही करना चाहते । ईसकी कोई आवश्यकता नही है ।
पद्मश्री श्री सुभाष पाळेकर गुरूजी
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AHC,INDIA 24/6/2018