Om shanti aap sabhi ko
प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन* “मातेश्वरी जी के स्मृति दिवस पर सुनाने के लिए विशेष महावाक्य” “इस दु:ख की दुनिया में कोई भी तमन्ना नहीं रखनी है, सुख की दुनिया में चलने के लिए अपने संस्कार देवताई बनाने हैं” गीत: किसी ने हमको अपना बनाके मुस्कराना सिखा दिया... ओम् शान्ति। एक है मुस्कराने की दुनिया और दूसरी है रोने की दुनिया.. अभी कहाँ बैठे हो? रोने की दुनिया का अन्त और मुस्कराने की दुनिया अथवा सुख की दुनिया का अभी सैपलिंग लग रहा है। हम हैं संगम पर लेकिन अभी उस सुख की दुनिया के लिये पुरूषार्थ कर रहे हैं, तो अपना सारा अटेन्शन उसी पर है। अभी इस रोने की दुनिया अथवा दु:ख की दुनिया में कोई भी तमन्ना धन-सम्पत्ति की, मर्तबे की, मान-इज्जत की किसी भी बात की नहीं रखनी है। क्योंकि अभी तो सभी में, धनसम्पत्ति में भी रोना ही है यानि दु:ख ही है। इस दुनिया की कोई भी प्राप्ति, जिसको प्राप्ति गिनी जाये उसमें अभी कोई सुख रहा नहीं है। इसलिये बाप कहते हैं कि जो मैं मुस्कराने की अर्थात् सदा सुख की दुनिया बना रहा हूँ, उसमें चलने के लिए अपने संस्कार भी ऐसे बनाओ। देखो, चित्रकार भी देवताओं के चेहरे बड़े अच्छे मुस्कराहट वाले बनाते हैं, उनके चेहरे में पवित्रता, दिव्यता आदि दर्शाते हैं। तो अभी हम वही संस्कार बना रहे हैं अथवा धारण कर रहे हैं, वहाँ कोई दु:ख का चिन्ह है ही नहीं। वहाँ कभी रोना होता नहीं है, इसलिये बाप कहते हैं अभी बहुत रोया, बहुत दु:ख पाया अर्थात् दु:ख की दुनिया के अनेक जन्म भोगे। अभी वह रात पूरी हो करके दिन भी तो आयेगा ना। तो यह रात अथवा दु:ख की जो जनरेशन्स है वह अभी पूरी होती है, अभी सुख की जनरेशन चालू होती है। तो उस सुख की दुनिया का फाउण्डेशन यहाँ लगाना है इसलिये बहुत सम्भाल रखनी है। अभी फाउण्डेशन लगा तो लगा, नहीं लगा तो फिर सदा के लिये उस सुख को प्राप्त करने से वंचित रह जायेंगे। जो गाया भी हुआ है कि मनुष्य जन्म अति दुर्लभ है, वह किस जन्म के लिये? इस जन्म के लिये क्योंकि ऐसे जन्म तो हमारे बहुत हैं, परन्तु सबसे महत्व इस जन्म का है क्योकि अभी हम अपना ऊंच जनरेशन्स का फाउण्डेशन लगा रहे हैं। कई समझते हैं कि मनुष्य जन्म 84 लाख योनियों के बाद मिलता है इसलिये समझते हैं कि यह मनुष्य जन्म अति दुर्लभ है, यह 84 लाख योनियों के बाद ही एक सुख का जन्म मिलता है। परन्तु ऐसा होता तो सभी मनुष्य सुखी होने चाहिए फिर इतना दु:ख क्यों भोगते हैं? मनुष्य को तो मनुष्य जन्म में ही अपने जन्म ले करके जो दु:ख अथवा सुख है या जो भी कर्मों का हिसाब है, वह भोगना है। बाकी ऐसे नहीं है कि कोई जानवर, पंछी, पशु या वृक्ष आदि मनुष्य बनता है। नहीं, यह तो सभी बातें अभी बुद्धि में हैं कि मनुष्य को अपने कर्म का हिसाब मनुष्य जन्म में पाना है। और यह भी जानते हैं कि मनुष्य के अधिक से अधिक 84 जन्म होते हैं। बाकी जितना-जितना जो पीछे आते हैं उनके जन्म भी कम रहेंगे। तो यह सभी हिसाब अभी बुद्धि में है, उसी हिसाब अनुसार हम जानते हैं कि हमारा अभी यह अन्तिम जन्म है जिसमें अभी हम नई जनरेशन अथवा सुख के अनेक जन्मों की जो प्रालब्ध है वह बना सकते हैं इसलिये इस जन्म की महिमा है कि यह जन्म सबसे उत्तम है क्योंकि इसमें हम उत्तम बन सकते हैं। तो इस जन्म की बहुत सम्भाल और अटेन्शन रखने का है। यही टाइम है जबकि परमात्मा आ करके अभी हमको ऊंच बनाने का बल दे रहा है। तो अभी जब उससे बल मिल रहा है तो लेना ही है। ऐसे नहीं इस जन्म में हम आपेही ऊंच बन जायेंगे। नहीं, बनाने वाला जब आया है तो उनसे अपने को बनना है। कैसे बनना है? उनके फरमान अथवा उनकी जो आज्ञा वा मत मिल रही है, उसको ले करके। अभी उसकी मत वा डायरेक्शन क्या है, वह तो अच्छी तरह से बुद्धि में है ना। “बी होली एण्ड बी योगी”। मुझे याद करो और पवित्र रहो। तो यह बात अपनी बुद्धि में अच्छी तरह से रखकर उनके फरमान पर अपने को चलाना है तब अपना जो सौभाग्य है वह ऊंच बना सकेंगे अथवा उस सदा सुख की दुनिया का सुख पा सकेंगे। ऐसे तो नहीं समझते हो कि यह सब कल्पनायें हैं, ऐसा तो ख्याल नहीं आता है ना! कल्पना क्यों समझी जाये! जबकि हम देख रहे हैं कि यह दु:ख की दुनिया है। यह तो कल्पना नहीं है, यह प्रैक्टिकल है। तो जरूर सुख की दुनिया भी प्रैक्टिकल होनी चाहिए। जो अभी नहीं है लेकिन होनी तो चाहिए ना। ऐसे तो नहीं यह संसार सदा दु:ख का ही है? इसमें सुख और दु:ख दोनों ही हैं परन्तु सुख का भी समय है। ऐसे नहीं कहेंगे कि अभी जो सुख है, बस यही सुख है, यही स्वर्ग है। ऐसा ही सुख दु:ख है, परन्तु नहीं। अभी के सुख को सुख नहीं कहेंगे, वो सुख जो था जिसमें हम सदा सुखी थे, वह चीज ही और है इसलिये सुख उसको कहेंगे। आज कल्पना क्यों समझते? क्योंकि आज वह है ही नहीं। परन्तु यह अपने विवेक और इस नॉलेज के बल से समझते हैं कि जब दु:ख की दुनिया है तो जरूर सुख की दुनिया भी होनी चाहिए। कई तो ऐसा मार्ग बतलाते हैं कि भले दु:ख आवे परन्तु तुम समझो कि मैं सुखी हूँ, इसलिये कई समझते हैं सुख की कोई इच्छा या तमन्ना नहीं रखनी है, इससे इच्छा मात्रम् अविद्या बनना है। उसकी इच्छा ही क्या रखनी है, जो होता है उसमें ही सुख समझो। फिर भले रोग हो, भले कोई अकाले मृत्यु हो, कोई भी ऐसी बात हो परन्तु तुम अपने को समझो मैं सुखी हूँ। यह तो हो गया अपनी कल्पना का सुख, इसको थोड़ेही प्रैक्टिकल कहेंगे। जैसे दु:ख प्रैक्टिकल है, कई दु:ख की बातें प्रैक्टिकल में आती हैं। ऐसे सुख भी तो प्रैक्टिकल होना चाहिए। तो अपने टाइम पर फिर उस सुख की दुनिया को आना है, लेकिन उसका फाउण्डेशन अभी लग रहा है। उसके लिये हमें अभी अपने कर्मों को श्रेष्ठ बनाना है क्योंकि यह कर्म क्षेत्र है, कर्म भूमि है इसमें जो बोयेंगे सो पायेंगे, यह भी इसका नियम है। बाप कहते हैं इस लॉ को तो मैं भी ब्रेक नहीं कर सकता हूँ। भल मैं वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी हूँ लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं चाहूँ तो आसमान को नीचे करूँ, धरती को ऊपर करूँ। वह समझते हैं भगवान तो कुछ भी कर सकता है, वह मुर्दे को भी जिन्दा कर सकता है। परन्तु भगवान वा शक्ति का अर्थ यह नहीं है कि वह मुर्दे को जिन्दा करे। वह तो आत्मा को शरीर छोड़ने का ही है, वह तो बात ही नहीं है। अगर उसको जिन्दा कर दूं, तो क्या वह फिर मुर्दा नहीं बनेगा? फिर भी बनेगा। तो हर चीज का जो नियम है वह तो चलेगा ही, इसलिये इसमें कोई शक्ति दिखालाने की बात नहीं है। यह जो 5 तत्व हैं, हर तत्व का भी अपना नियम है, वह भी गोल्डन, सिल्वर, कॉपर और आइरन एज अनुसार अपनी स्टेजेस में आते हैं। यह अर्थक्वेक होता है, यह फ्लड्स होती हैं, यह तूफान आता है, यह सभी होता है, यह भी अभी डिस-आर्डर में, तमोप्रधान हो गये हैं, हर चीज में अभी तमोप्रधानता है। तो यह सभी राज बाप ही समझाते हैं कि अभी हर चीज बिगड़ चुकी है, अभी मैं आया हूँ तो हर चीज को सुधारता हूँ इसके लिए मैं पहले मनुष्य आत्मा को सुधारता हूँ, उससे सब चीजें सुधर जाती हैं। फिर संसार जब सुधरा हुआ है तो उसमें सदा सुख है फिर कोई चीज एक दो को दु:ख नहीं देती है। अभी सब चीजों से दु:ख मिलता है, तो इन सभी बातों को समझना और किस तरह से सृष्टि का अथवा इस संसार का चक्र चलता है, उसे जानना– इसी का नाम है ज्ञान। इसी का मैं नॉलेजफुल हूँ, मेरे पास इसकी फुल नॉलेज है, यह कर्मों का कैसा खाता चलता है, कैसे नम्बरवार आते हैं, इन्हीं सभी बातों को मैं जानता हूँ इसलिये कहते हैं कि ज्ञान को कोई मनुष्य यथार्थ रीति समझ नहीं सकते, क्योंकि मनुष्य तो सब इस चक्र में आने वाले हैं ना। तो जो चक्र में आने वाले हैं वह इन बातों को नहीं जान सकते हैं, जो चक्र से बाहर है, उसके पास यह सब नॉलेज रहती है। तो बाप कहते हैं कि मैं ही आ करके फिर सुनाता हूँ क्योंकि वह जानकारी मेरे पास ही रहती है और सबसे भूल जाती है। तो सबको बल देने वाला भी मैं हूँ, मेरे में ही वह पॉवर रहती है और तो सभी जन्म मरण के चक्र में आ करके अपनी पावर्स खो देते हैं। तो मैं आता हूँ अपना बल देने के लिए। यह तो सीधी बातें हैं, इसमें मूँझने की बात है ही नहीं। इसलिये मुझे परम आत्मा, सर्व शक्तिवान, जानी-जाननहार, ज्ञान का सागर,... कहकर महिमा करते हैं। यह मेरी महिमा कोई मुफ्त की थोड़ेही है, मैंने काम किया है और मेरा कुछ कर्तव्य है, मैने बहुत ऊंचा काम यहाँ किया है, इसलिए महिमा है। जैसे मनुष्य की भी महिमा क्यों होती है। गांधी के लिए कहते हैं, वह बहुत अच्छा आदमी था, ऊंचा था। तो ऊंचा माना ऐसे नहीं एकदम बड़ा बड़ा था। ऐसे तो बड़ा नहीं था ना, बड़ा माना अपने कर्तव्य में बड़ा था। उसने अच्छे कर्तव्य किये इसलिये उनको सब याद करते हैं, उनकी सब महिमा करते हैं। तो मनुष्य की हिस्ट्री में भी जो बातें आती हैं कि फलाने ने यह अच्छा काम किया, उसी अनुसार फिर उनका गायन भी होता है। तो परमात्मा की भी इतनी जो महिमा है, उसने भी हमारे लिये कुछ काम किया होगा ना। बाकी ऐसे थोड़ेही है कि बस, ऊंचा बैठा है, बस उसकी शक्ति चलती रहती है या उसका यह सब काम होता ही रहता है। उसने आ करके कुछ किया है। मनुष्यों को ऐसा ऊंचा उठाया है और इस तरीके से उठाया है इसलिये उसकी महिमा है। तो अभी परमात्मा की महिमा और परमात्मा के कर्तव्य को समझना है। जैसे धर्म पितायें भी जो आये हैं जिनकी महिमा गाई हुई है। गुरूनानक देव, क्राईस्ट, बुद्ध आदि उन्होंने भी तो उसके तरफ इशारा किया है ना। तो यह सब साफ बातें हैं जिसको समझ करके पुरूषार्थ करना है और बाप जो फरमान करते हैं कि मुझे याद करो और अपने कर्मों को अच्छा पवित्र रखो तो उसी से तुम्हारा यह जो हेविन का अधिकार है वह तुमको प्राप्त होगा। तुम वैसे भी कर्म तो करते ही हो परन्तु वह कर्म तुम्हारे राँग होते जाते हैं, उसी से तुम्हारा दु:ख बढ़ता जाता है इसलिये बाप कहते हैं अभी समझ से करो, मैं जो समझ देता हूँ, उसको ले करके अच्छी तरह से करो, मेरे डायरेक्शन्स पर रहो। मेरी मत पर चलो तो फिर तुम्हारे जो एक्शन्स हैं वह राइट रहेंगे और उसके आधार से तुम सुखी रहेंगे। अपने एक्शन्स से ही तो बनना बिगड़ना होता है। उसको हम क्या बनायें, कैसा बनाये उसकी हमको समझ चाहिए, वह अभी समझ दे रहा है, उस पर चलना है। इन बातों का समझ करके अपना ऐसा पुरूषार्थ रखना है। अच्छा। देखो, कितनी सिम्पल, सहज बात है, इसके लिये मनुष्य कितने वेद-शास्त्र, ग्रंथ-पुराण और कितने हठयोग, प्राणायाम आदि करते हैं। यह सब बातें साफ करके बाप समझाते हैं। चलना तो कर्म से ही है लेकिन कर्म को खाली सुधारते चलो। वह सुधारो कैसे? वह समझाते हैं। उसके लिये तुमको कोई विद्वान, पण्डित वा आचार्य बनने की बात ही नहीं है। तुमको अपने कर्म को स्वच्छ बनाने का है। स्वच्छता (पवित्रता) क्या है, वह बैठ करके स्पष्ट समझाते हैं कि तुम मेरी याद के बिना पवित्र बन ही नहीं सकते हो। भले तुम कोई देवता को याद करो। किसी के भी योग से तुम पवित्र नहीं बनोंगे। पापों को दग्ध करने का बल मेरे पास है इसलिए बाप कहते हैं जब तक मेरे से कनेक्शन नहीं है तब तक पावन नहीं बन सकते। जैसे बत्तियों का कनेक्शन मेन पॉवर हाउस से है ना। अगर वहाँ से कनेक्शन न हो तो बत्ती में लाइट नही होगी। वह बल नहीं आयेगा। इसी तरह से तुम्हारा कनेक्शन मेरे से हो, मैं हूँ मेन पॉवर हाउस तो उससे कनेक्शन चाहिए ना। अगर उससे कनेक्शन नहीं होगा तो तुमको ताकत नहीं मिलेगी और ताकत नहीं मिलेगी तो पाप दग्ध नहीं होंगे। पाप दग्ध नहीं होंगे तो तुम आगे नहीं बढ़ सकेंगे, तब कहते हैं एक मेरे से योग लगाओ। मेरे बिना तुम्हारी गति सद्गति नहीं हो सकती। अच्छा! मीठे-मीठे बच्चों को यादप्यार और गुडमार्निग। ओम् शान्ति। वरदान: अपने चेहरे और चलन से सत्यता की सभ्यता का अनुभव कराने वाले महान आत्मा भव महान आत्मायें वह हैं जिनमें सत्यता की शक्ति है। लेकिन सत्यता के साथ सभ्यता भी जरूर चाहिए। ऐसे सत्यता की सभ्यता वाली महान आत्माओं का बोलना, देखना, चलना, खाना-पीना, उठना-बैठना हर कर्म में सभ्यता स्वत: दिखाई देगी। अगर सभ्यता नहीं तो सत्यता नहीं। सत्यता कभी सिद्ध करने से सिद्ध नहीं होती। उसे तो सिद्ध होने की सिद्धि प्राप्त है। सत्यता के सूर्य को कोई छिपा नहीं सकता। स्लोगन: नम्रता को अपना कवच बना लो तो सदा सुरक्षित रहेंगे। 🌝