365 दिन में 1825 रूपों में दर्शन देते हैं “महाकाल”

in #mahadev6 years ago

जय श्री महाकाल

उज्जैन 🚩 विश्व में अकेले राजा महाकाल ही है, जो भक्तों को नित नूतन और अभिनव रूपों में दर्शन देते है। कभी प्राकृतिक रूप में तो कभी राजसी रूप में आभूषण धारण कर लेते है। कभी भांग, कभी चंदन और सूखे मेवे से तो कभी फल और पुष्प से बाबा को श्रंगारित किया जाता है। राजाधिराज महाकाल अपने भक्तों को 365 दिन में 1825 रूपों में दर्शन देते हैं। दर्शन देने का यह सिलसिला प्रतिदिन भस्मारती से शुरू होकर शयन आरती तक चलता हैं। मंदिर में होने वाली पांच आरतियों में बाबा को अलग– अलग रूप में श्रंगारित किया जाता है। बारह ज्योर्तिलिंग में से श्री महाकालेश्वर मंदिर विश्व का पहला ऐसा मंदिर है जहां प्रतिदिन पांच आरती होती हैं। मंदिर के 21 पुजारी क्रम अनुसार बाबा को आरती के पहले श्रंगारित करते हैं। श्री महाकाल पृथ्वी लोक के अधिपति अर्थात राजा है। देश के बारह ज्योतिर्लिंग में महाकाल एक मात्र ऐसे है जिनकी प्रतिष्ठा पूरी पृथ्वी के राजा और मृत्यु के देवता के रूप में की गई। महाकाल का अर्थ समय और मृत्यु के देवता दोनों रूपों में लिया जाता हैं।कालगणना में शंकु यंत्र का महत्व माना गया है। मान्यता है कि पृथ्वी के केन्द्र उज्जैन से उस शंकु यंत्र का स्थान श्री महाकाल का शिवलिंग ही है। इसी स्थान से पूरी पृथ्वी की कालगणना होती रही है।
ये है बाबा के श्रंगारित होने का समय
भस्मारती–
बारह ज्योर्तिलिंग में सिर्फ उज्जैन के महाकाल को ही भस्म रमाई जाती है। यह विश्व का एक मात्र मंदिर है जहां तड़के 4 बजे बाबा को हरिओम जल से स्नान करवाया जाता हैं, इसके बाद अघोर मंत्र से भस्म रमाकर श्रंगार किया जाता है। तड़के 4 बजे से 6 बजे तक होने वाली इस आरती में देश दुनिया के लोग दर्शन करने मंदिर पहुंचते है।
दद्योदक आरती
🕉 भोग आरती 🕉
दद्योदक आरती–
भस्मारती के बाद सुबह 7.30 बजे बाबा महाकाल की दद्योदक आरती की जाती है। इस आरती में मंदिर के शासकीय पुजारी भगवान महाकाल का आकर्षक श्रंगार कर दही चावल का भोग लगाते है।
भोग आरती–
महाकाल बाबा को प्रतिदिन सुबह 10.30 बजे भोग लगाया जाता है। मंदिर में पुजारी परिवार की ओर से पहले बाबा का आकर्षक श्रंगार किया जाता है, इसके बाद मंदिर समिति की ओर तैयार किए गया भोग महाकाल का अर्पित किया जाता है। इसके बाद समिति द्वारा संचालित अन्नक्षेत्र में श्रद्धालुओं को भोजन मिलता है।
संध्याआरती–
मंदिर में होने वाली चौथी आरती संध्याआरती होती हैं। शाम 7.30 बजे होने वाल इस आरती को संध्याआरती कहा जाता है। आरती के पूर्व शाम 4.30 बजे पुजारी बाबा का आकर्षक श्रंगार करते है। इसके बाद शाम 5.30 बजे संध्या पूजन किया जाता है। पूजन के ठीक दो घंटे बाद बाबा की संध्यारती की जाती है।
शयन आरती– 19 घंटे दर्शन के बाद बाबा शयन आरती के साथ ही विश्राम की ओर प्रस्थान करते हैं। संध्याआरती के बाद बाबा महाकाल को 10.30 बजे शयन आरती शुरू की जाती हैं। 30मिनट की इस आरती के साथ ही बाबा को गुलाब के फूलों से श्रंगारित किया जाता है। आरती के बाद बाबा शयन करते है। वहीं अगले दिन सुबह 4 बजे बाबा अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए जाग उठते हैं।
तीन किलो भांग से होता है श्रंगार
राजाधिराज महाकाल की संध्याआरती में प्रतिदिन तीन किलो भांग से श्रंगार किया जाता है। बाबा को मंदिर समिति के पुजारी संध्या पूजन के पूर्व भांग से श्रंगारित करते हैं। इतना ही नहीं बाबा को प्रतिदिन आधा किलो सुखे मेवे से आकर्षक श्रंगार किया जाता हैं
[8:47 PM, 8/1/2018] +91 98831 46280: 🙏🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🙏

🙏!! हर हर महादेव!!🙏

'भगवान' को खोज रहे वैज्ञानिक 'नटराज' से हो रहे प्रभावित।

हिन्दुओं के सबसे शक्तिशाली देवता हैं भगवान शिव। शिव की अभिव्यक्ति 'नटराज' के रूप में भी हुई है। नटराज जिसे 'प्राण शक्ति' का प्रतीक भी माना जाता है। भारत में तमिलनाडु प्रांत के चिदम्बरम में प्राचीन नटराज मंदिर स्थित है जबकि इन्हीं नटराज की विशाल प्रतिमा को स्विट्जरलैंड के जेनेवा स्थित दुनिया के सबसे बड़े भौतिकी प्रयोगशाला के बाहर लगाया गया है। सवाल उठता है कि 'क्यों' ?

बता दें कि यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सर्न) वही प्रयोगशाला है, जहां दो साल पहले 'गॉड पार्टिकल' जिसे हिग्स-बोसोन का नाम दिया गया है, का अनुसंधान हुआ। यहां अनुसंधान हुए हिग्स-बोसोन को 'ब्रह्मकण' के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन, आखिर ऐसा क्यों हैं कि दुनिया की सबसे बड़ी भौतिकी प्रयोगशाला के बाहर भगवान शिव की नटराज प्रतिमा लगाई गई।
पट्टिका पर लिखी है चौंकाने वाली जानकारी

18 जून 2004, दो मीटर लंबी नटराज की प्रतिमा भारत सरकार की ओर से सर्न को भेंट स्वरूप दी गई। सर्न के बाहर स्थापित नटराज प्रतिमा के ठीक बगल में लगी पट्टिका पर जो कुछ लिखा है, वह शायद आपको भी हैरान कर दे।

महान भौतिक वैज्ञानिक फ्रित्जोफ कैपरा ने उद्धरण के साथ यहां लिखा है, ''सैकड़ों वर्ष पूर्व भारतीय कलाकारों ने तांबे की श्रृंखला से भगवान शिव के नृत्य में लीन स्वरूप को बनाया। आज हमारे समय में तमाम भौतिक वैज्ञानिक फिर से उन्नत तकनीकों को इस्तेमाल करते हुए 'कॉस्मिक डांस' का प्रारूप तैयार कर रहे हैं। वर्तमान में वैज्ञानिकों की 'कॉस्मिक डांस' की थ्योरी, दरअसल प्राचीन मिथकों, धर्म, कला और भौतिकी की बुनियाद पर ही खड़ी है।

कॉस्‍मिक डांस और आनंद तांडव

इसी पट्टिका पर वैज्ञानिक फ्रित्जोफ कैपरा आगे लिखते हैं, ''आनंद तांडव करते शिव प्रतीक हैं सभी व्यक्त-अव्यक्त के आधार का। आधुनिक भौतिक विज्ञान हमें बताता है कि निर्माण और प्रलय की प्रक्रिया सिर्फ ब्रह्मांड में जीवन के आरंभ और अंत से ही नहीं जुड़ी हुई है, बल्कि ये पूरी सष्टि के कण-कण से जुड़ी हुई है।''

कैपरा लिखते हैं, ''क्वांटम फील्ड थ्योरी के अनुसार 'डांस ऑफ क्रियेशन एंड डिस्ट्रक्शन' ही सभी तत्‍वों के होने का आधार है। आधुनिक भौतिकशास्त्र हमें बताता है कि हर उप-परमाणविक कण ना केवल एक 'ऊर्जा-नृत्य' करता है, बल्कि यह खुद भी एक 'ऊर्जा-नृत्य' ही है। सृजन और विनाश की एक सतत प्रक्रिया।''

वैज्ञानिक फ्रित्जोफ कैपरा, सर्न के बाहर स्थित नटराज प्रतिमा के बगल में लगी पट्टिका पर लिखते हैं, ''खुद हम भौतिकी के वैज्ञानिकों के लिए शिव का 'आनंद-तांडव', उप-परमाणविक कणों का 'ऊर्जा-नृत्य' ही है, जो आधार है हर अस्तित्व और सभी प्राकृतिक घटनाओं का।''

गतिमान ब्रह्मांड का प्रतीक है नटराज

नटराज प्रतिमा के बारे में पट्टिका पर सर्न के शोधार्थी एडन रैन्डल कोंड लिखते हैं, ''दिन की रोशनी में जब सर्न हलचलों से भरा होता है, शिव तब भी नृत्य मुद्रा में ही होते हैं। जो हमें ये याद दिलाता है कि ब्रह्मांड लगातार गतिमान है, खुद को परिवर्तित कर रहा है और स्थिर तो ये कभी नहीं रहा।''

रैन्डल कोंड लिखते हैं, 'शिव, अपनी इस मुद्रा से हमें हर पल याद दिलाते हैं कि हमें अभी भी इस ब्रह्मांड का सबसे बड़ा रहस्य नहीं पता है।''

वैज्ञानिक कार्ल सेगन और नटराज प्रतिमा

मशहूर भौतिक वैज्ञानिक कार्ल सेगन के अनुसार, ''हिन्दू धर्म विश्व के उन महान धर्मों में से एक है जिसके अनुसार इस ब्रह्माण्ड की उत्तपत्ति और विध्वंस की प्रक्रिया निरंतर जारी है।''

सेगन कहते हैं, '' हिन्दू धर्म अकेला ऐसा धर्म है जो हमें यह बताता है कि हमारे दिन और रात की तरह ही स्वयं ब्रह्मा के भी दिन और रात होते हैं। हमारे 24 घंटे के दिन और रात की जगह ब्रह्मा के दिन और रात की अवधि तकरीबन 8.64 बिलियन वर्ष की होती है। हिन्दू धर्म एक अनवरत प्रक्रिया की बात करता है।''

प्रतिमा लगाने पर हुई थी सर्न की आलोचना

जून-2014 में जब शिव की नटराज प्रतिमा यहां लगाई गई तो वैज्ञानिकों को आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा। शिव के नृत्य स्वरूप को लेकर रूढ़िवादी ईसाई तब तक आपत्तियां उठाते रहे, जब तक वैज्ञानिकों ने हिग्स-बोसोन पार्टिकल की खोज नहीं कर ली। इसके बाद वैज्ञानिकों ने आलोचकों को स्पष्ट किया कि आखिर क्यों सृष्टि के 'संहारक' की प्रतिमा यहां लगाई गई है।

क्या है 'नटराज'

अमूमन हम भारतीय भी नटराज की प्रतिमा के रहस्य नहीं जानते हैं। दरअसल, नटराज प्रतीक है शिव के तांडव स्वरूप का। हम में से ज्यादातर लोग तांडव नृत्य को शिव के उग्र रूप से जोड़कर देखते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। शिव तांडव के भी दो प्रकार हैं। पहला है 'तांडव', शिव का ये रूप 'रुद्र' कहलाता है। जबकि दूसरा है 'आनंद-तांडव', शिव का ये रूप 'नटराज' कहलाता है। रुद्र रूप में शिव समूचे ब्रह्माण्ड के संहारक बन जाते हैं वहीं सर्न के बाहर लगी नटराज प्रतिमा 'सृष्टि निर्माण' का प्रतीक है।

आनंद तांडव के भी पांच रूप हैं -

  1. 'सृष्टि' : निर्माण, रचना।
  2. 'स्थिति' : संरक्षण, समर्थन।
  3. 'संहार' : विनाश
  4. तिरोभाव : मोह-माया
  5. अनुग्रह : मुक्ति
    नटराज, दो शब्दों 'नट' यानी कला और राज से मिलकर बना है। इस स्वरूप में शिव कलाओं के आधार हैं।

आनंद तांडव नृत्य

नटराज शिव की प्रसिद्ध प्राचीन मूर्ति की चार भुजाएं हैं। उनके चारो ओर अग्नि का घेरा है। अपने एक पांव से शिव ने एक बौने को दबा रखा है। दूसरा पांव नृत्य मुद्रा में ऊपर की ओर उठा हुआ है। शिव अपने दाहिने हाथ में डमरू पकड़े हुए हैं। डमरू की ध्वनि यहां सृजन का प्रतीक है। ऊपर की ओर उठे उनके दूसरे हाथ में अग्नि है। यहां अग्नि विनाश का प्रतीक है। इसका अर्थ यह है कि शिव ही एक हाथ से सृजन और दूसरे से विनाश करते हैं।

शिव का तीसरा दाहिना हाथ अभय मुद्रा में उठा हुआ है। उनका चौथा बांया हाथ उनके उठे हुए पांव की ओर इशारा करता है, इसका अर्थ यह भी है कि शिव के चरणों में ही मोक्ष है। शिव के पैरे के नीचे दबा बौना दानव अज्ञान का प्रतीक है, जो कि शिव द्वारा नष्ट किया जाता है। चारो ओर उठ रही लपटें इस ब्रह्माण्ड का प्रतीक है। शिव की संपूर्ण आकृति ओंकार स्वरूप दिखाई पड़ती है। विद्वानों के अनुसार यह इस बात की ओर इशारा करती है कि 'ॐ' दरअसल शिव में ही निहित है।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

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