A Poet's Desire to Meet His Lover (Poem in Hindi)
खुले बिखरे बालों के साये समेटे
टिमटिमाती मोतियों सी आँख लेकर
अपनी हँसी को होंठों में कोमल छिपाये
बैठी हुई है आँसुओं के ख्वाब पीकर
है वो चंचल मखमली सुन्दर परी सी
उसके तड़पते दिल में खिलते फूल प्यारे
दुःख नहीं दिखने वो देती मुख पे अपने
प्यार के कंचन लुभाते मन सुहाने
हुए दर्शन मुझे उस देवांगना के
शर्म से झुकती उठी पलकें थीं उसकी
लज्जा के भूषण कमल से तन को संभाले
इत्रित किये थी मुस्कराहट समतल पवन सी
कवि मैं कविता वो मेरी बन रही है
प्रेम की मधु सत्यता सनते सनाते
दूर होकर भी वो मेरे चिर निकट है
प्यार के मोती चुनें छुपते छिपाते