भरत के वीर पुत्र महाराना प्रताप ( BHARAT KA VEER PUTRA MAHARANA PRATAP )steemCreated with Sketch.

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15वीं शताब्दी का समय भारत में अनेक छोटे बड़े राज्य थे उनमें से एक था मेवाड़ मेवाड़ जो उस समय राजपूताना की एक प्रमुख राज्य के रूप में उभरा था यह वह काल था जब भारत में मुगलों का शासन बढ़ता चला जा रहा था अनेक राज्य मुगलों की अधीनता स्वीकार कर चुके थे इधर उत्तर भारत में राजपूत एक प्रमुख शक्ति थे मेवाड़ पर सिसोदिया वंश के राजपूतों का शासन था जिनका मुगलों के साथ बराबर विरोध बना रहता था मेवाड़ के इतिहास के पन्नों को पलटे हैं तो एक प्रमुख शूरवीर का नाम उभरता है यह नाम है महाराणा प्रताप का महाराणा प्रताप शौर्य के प्रतीक मातृभूमि पर मर मिटने वाले स्वतंत्रता के पुजारी वीर प्रताप की शौर्य गाथा उसे अरावली की घाटी आज भी गूंज रही है

निर्माण की दो प्रमुख किले हैं कुंभलगढ़ और चित्तौड़गढ़ और सुरभि शताब्दी में मेवाड़ के राणा कुंभा और राणा सांगा ने मेवाड़ की कीर्ति को शिखर तक पहुंचाया उन्हीं के वंशज महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को कुंभलगढ़ के किले में हुआ यहीं इसी स्थान पर शंभूगढ़ के तत्कालीन महाराणा उदयसिंह और महारानी अवंतीबाई का प्रभाव निर्वाण का उत्तराधिकारी राजा का दुलारा ब्लू की देखरेख में पला-बढ़ा जिसे प्यार से बेतुका कहते थे मेवाड़ का भावी महाराणा वनवासियों के साथ बेहद प्रसन्न रहता देश प्रेम की ज्वाला उसके हृदय में सदा प्रज्वलित रहे तो उसे अपने पूर्वजों से विरासत में मिली थी मेवाड़ सदा से ही मुगलों की आंख की किरकिरी रहा और युद्ध होते रहने वालों का राजनीतिक महत्व तो था ही साथ ही वह गंगा भूमि के व्यापार मार्ग को पश्चिमी तट से जोड़ता था अतः मेवाड़ को अपने अधीन करना मुगल शासकों के लिए जरूरी हो गया था
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मध्यकालीन भारत का इतिहास देखें तो पाएंगे कि उस काल में महत्वाकांक्षी मुगल सम्राट अकबर का साम्राज्य लगभग पूरे भारत में छा चुका था और एक राजपूत सरदार यहां तक कि राणा प्रताप के कुछ परिजन भी अकबर की अधीनता स्वीकार कर चुके थे और परिणाम स्वरुप उन्हें मिले थे ऊंची ऊंची पदवी या और जागी रे पर राणा प्रताप अकबर जैसी महा पराक्रमी सम्राट के सामने नहीं झुके जाता है कि 28 फरवरी सन 1572 को होली के दिन प्रताप का गोगुंदा के किले में राज्याभिषेक हुआ जब प्रताप का राज्याभिषेक हुआ तब उन्हें उनकी राजधानी मिली संसाधनों का जरिया वह बहुत कम साधनों से ही मुगल सम्राट से जूझते रहे प्रताप ने हर संकट को चुनौती समझा और इससे उनके संकल्प और अधिक मजबूत होते गए अकबर ने राणा प्रताप को समझाने के लिए वह उनकी अधीनता स्वीकार कर ले अनेक दूध भेजें पर राणा स्वाभिमानी थे देशभक्त थे वह नहीं माने उनका राजसी वैभव छूट गया किंतु कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी राणा प्रताप ने अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया जैसी उनकी अपनी तलवार थी वैसा ही चौकन्ना था राणा प्रताप का घोड़ा चेतक यदि निर्माण की भौगोलिक स्थिति को देखें तो पाएंगे कि इस का अधिकांश भाग पथरीला और पहाड़ी है आसपास जंगल है और जनजातियों की बस्तियां है राणा प्रताप में जनजातियों के रणबांकुरों को अपने साथ लिया और युद्ध की तैयारियां करते रहे
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यहां से होकर प्रसाद की सेनाओं ने इस घाटी को पार करके उस पार खमनोर के समीप खड़े मुगल सेना उसे संघर्ष किया था इस घाटी की विशेषता यह है कि इस गाड़ी के जो मिट्टी है उसका रंग पीलापन लिए हुए हैं इसीलिए हल्दी के समान रंग वाली मिट्टी का होने के कारण इसको हल्दीघाटी कहा जाता है यह बहुत ही तंग कर रहा है जिसमें से होकर प्रताप की सेना ने आगे बढ़कर के मुगलों की सेना का विरोध किया था रक्त तलाई भर गई थी गया था हल्दीघाटी हल्दीघाटी का जो है यहां से दूर है
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मैदान की जो सीमा है वह आगे बनास नदी से मिलती है जो मुगलों की जगह थी उस बनास नदी के किनारे से किस प्रदेश से इस भाग से बढ़ती बढ़ती इस स्थान तक आई थी मुगलों की सेना ने हल्दीघाटी के मुंह तक पहुंची थी प्रताप की सेना उन्हें उनको खड़से खड़से लगभग डेढ़ किलो मीटर तक यहां आए यही वह स्थान है जहां पर मुगल सेना के सेनापति मानसिंह के हाथी पर प्रताप ने अपने घोड़े पर छलांग लगाई थी और यही वह स्थल है जहां पर सेट तक का पिछला पैर हाथी में हाथी की सूंड तलवार के कारण कट गया था जहां पर हकीम खान सूर लूट जाए क्योंकि उसके प्राण संकट में थे यह स्थान है जहां पर इसके साथ चलने वालों ने अपना बलिदान दिया था राणाप्रताप मैं हूं और इस प्रकार अंतिम युद्ध है यहां पर सरिता के रूप में हुई थी यहां पर एक विशेष का नाम लेना चाहूंगा जिसके साथ ही लोग इन पहाड़ियों के अंदर की पहाड़ियों के यहां पर एक वीर की तरफ इशारा कर रहा हूं यह रामसिंह की है जो ग्वालियर का राजा था और वह भी इस लड़ाई में अपने पुत्रों के साथ मौजूद था यहां पर यहां पर होने लगा हल्दीघाटी का युद्ध समाप्त हो गया राणा प्रताप के हादसे गोगुंदा का क़िला कुंभलगढ़ निकल गया हल्दीघाटी युद्ध महाराणा प्रताप का संघर्ष जीवन भर चलता रहा पराजित हो जाने पर भी अरावली की घाटी की प्रकृति और पराक्रम की गाथा की यशोगाथा मेवाड़ तक ही सीमित नहीं रही बल्कि समूचे देश में फैल गई हल्दीघाटी युद्ध के पश्चात राणा प्रताप के सामने समस्या थी की राजधानी कहां ले जाए उदयपुर से 1 किलोमीटर दूर था जहां पहुंचने के लिए पहाड़ी रास्ता पार करना पड़ता था उन्होंने अपनी राजधानी बनाई और शासन व्यवस्था मजबूत और दारू के साथ मिलकर संगठित की राणा प्रताप छापामार युद्ध के बाद कुछ कम हुआ क्योंकि अकबर का ध्यान पूर्वी भारत और पश्चिमी सीमा वर्ती गतिविधियों पर था राणा ने अवसर का लाभ उठाकर चित्तौड़ और मांडलगढ़ को छोड़ अपने राज्य का प्रमुख हिस्सा वापस हासिल कर लिया और मेवाड़ फिर से स्वतंत्र हो गया
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ऐसा माना जाता है कि मेवाड़ के राणा प्रताप शेर का शिकार करते हुए गिरी चोट खाकर घायल हो गए और 19 जनवरी 1597 को चावंड महाराणा प्रताप ने अपना शरीर त्याग दिया महाराणा प्रताप ने महाराणा प्रताप ने ऐसी ऊंची आदर्शों को स्थापित किया जो देश और काल की सीमा से परे मातृभूमि प्रेम और स्वाभिमान को निरंतर प्रेरणा देता रहा है और देता रहेगा

BHARAT KA VEER PUTRA MAHARANA PRATAP ( English translate )

In the 15th century, there were many small states in India, one of them was Mewar Mewar which had emerged as a prominent state of Rajputana at that time. This was the period when the rule of the Mughals in India was going on increasing, many kingdoms were under the rule of the Mughals. Rajput was a major power in northern India, there was the rule of the Rajputs of the Sisodia dynasty on Mewar which had an equal opposition with the Mughals. A major knight's name emerges is called Maharana Pratap Maharana Pratap Shaurya symbol Romance priest freedom to die on homeland Veer Pratap then turned to the pages of history the valley of the Aravali also echo today

Rana Kumbha and Rana Sank of Mewar reached the summit of Mewar, the two principal forts of Kumbhalgarh and Chittorgarh and in Surabhi Centuries, Maharana Pratap was born on 9th May 1540 in the fort of Kumbhalgarh. The effect of the then Maharana Uday Singh and Empress Avantibai was succeeded by the successor of Nirvana, under the supervision of Blue, the King's beloved. It was absurd to say that the future Maharana of Mewar was very happy with the forest dwellers. If the flames of love were always ignited in his heart, he had inherited it from his ancestors. Mewar had always been the lover of the eyes of the Mughals and the people of the war continued Political significance was at the same time and he used to connect the trade route of Ganga Land to the west coast, therefore, to surrender Mewar to Mughal rulers. Ruri was there to see the history of medieval India, you will find that in that era the ambitious Mughal Emperor Akbar's empire had spread almost all over India and a Rajput ruler, even some of Rana Pratap's families had accepted Akbar's submission and the result He had not attained the status of a higher rank or else in the form of Rana Pratap Akbar, in the form of a glorious emperor like Rana Pratap Akbar, on February 28, 1572. Pratap's coronation was held in Gogudda fort on Holi when Pratap's coronation was found, he found his capital, through the medium of resources, he struggled with the Mughal emperor with very little resources, Pratap considered every crisis as a challenge and would strengthen his resolve. For Akbar to explain to Rana Pratap, he accepted his subjection and sent many kinds of milk but Rana was a proud patriot, he did not believe They lost their majestic splendor but in difficult circumstances, even Rana Pratap had given Akbar's

If you look at the geographical situation of Rana Pratap, you will find that the majority of this is a forest around the rocky hills and the settlements of tribes are in the tribes of Rana Pratap. Take the battlefields with you and make preparations for the war

Through this, Prasad's forces crossed the valley and the Mughal army standing near Khamanaur had fought it. The specialty of this valley is that the color of the clay which has been painted yellowish, hence the turmeric-colored clay Due to this, it is called Haldighati, it is very difficult to get through, through which the army of Pratap went ahead and opposed the army of the Mughals, blood was washed. Or was Haldighati of Haldighati, which is far from here
The boundary of the plain meets the Banas river, which was in place of the Mughals, from which side of the river Banas, from which part of this growing land came to this growing place, the army of the Mughals reached the mouth of the Haldighati army of Pratap This is the place where he had reached Khadse Khadse for about 1.5km where Pratap had jumped on his horse on the elephant of the Mughal army commander Mansingh and this is where he is The back leg of the elephant in the elephant was cut due to the sword, where Hakim Khan Sur was looted, because his life was in crisis, this place where the people who accompanied him had sacrificed their lives,

I am Rampratap and thus The final battle was here in the form of Sarita, I would like to take the name of a special person, along with the people, pointing to a heroic side of the hills inside these hills. I am Ram Singh who was the king of Gwalior and he was also present in this fight with his sons. Here the battle of Haldighati was over. Rana Pratap's accident took place in Gogunda's Fort Kumbhalgarh, Haldighati war, Maharana Pratap's Although the struggle continued throughout life, even after being defeated, the nature of the Valley of Aravali and the success story of Parakram is not confined to Mewar, but the community After the battle of Haldighati which spread across the country, there was a problem in front of Rana Pratap where the capital was 1 kilometer away from Udaipur, where to reach the mountainous path to reach, he made his capital and the governance strengthened and organized together with alcohol. After Rana Pratap Chhaparma war, nothing happened because of Akbar's focus on eastern India and the western border activities Rana Taking advantage of the leavening, he took back the principal part of his state except Chittoor and Duttlagarh and Mewar became independent again. It is believed that Rana Pratap of Mewar was injured by falling prey to hunting Sher Singh and on January 19, 1597, Chavand Maharana Pratap gave up his body. Maharana Pratap Maharana Pratap established such high ideals which are beyond the boundaries of the country and the period. Remarks and self-esteem continues to inspire and will continue

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महाराणा प्रताप की कहानी हमे बहुत ही अच्छी लगी
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