रमेश, महेश और सोने के सिक्के
एक लालची व्यक्ति की कहानी, जिसने अपने करीबी दोस्त से भी दगा किया।
रमेश और महेश करीबी दोस्त थे। एक बार रमेश कुछ समान लेकर दुबई से लौट रहा था। टैक्सी न मिलने पर वह पैदल ही महेश के घर जा रहा था, जो पास में ही था। रास्ते में रमेश का एक बैग गिर गया, जिसमे सोने के कुछ सिक्के थे। पर उसे पता नहीं चला। महेश के घर पहुचने पर बैग खोने का पता चला।
तो रमेश और महेश ने सड़क पर काफी ढूंढा, पर बैग नहीं मिला। कुछ देर बाद महेश की लड़की उसी रास्ते से लौट रही थी। उसे सड़क पर एक बैग मिला, जिसमे सोने के तीस सिक्के थे। घर पहुंचकर उसने पिता को बताया, तो उसने रमेश को खबर कर दी। कुछ ही देर में रमेश आया। पर वह बेहद लालची था। वह बोला, मेरे बैग में चालीस सिक्के थे, पर इसमें केवल तीस सिक्के ही हैं।
बाकी के दस सिक्के कहा हैं? महेश और उसकी बेटी कहते रहे की बैग में तीस ही सिक्के मिले, पर रमेश ने पुलिस में रपट लिखवा दी। अदालत में उसने बताया कि मैं जब हवाई अड्डे से लौट रहा था, तो मेरा बैग रास्ते में गिर गया, जिसमे सोने के चालीस सिक्के थे। इन दोनों ने मेरे दस सिक्के चुरा लिए। वकील ने महेश की बेटी को कटघरे में बुलाया। बेटी बोली, मुझे यह बैग सड़क पर पड़ा मिला तो मैं खुश हो गई थी।
लेकिन घर जाकर मुझे पता चला की बैग रमेश चाचा का है, तो हमने तुरंत उनको खबर की। हमें पता नही था कि सच बोलने की सजा मिलेगी। जज साहब पूरी समझ गए। उन्होंने वह बैग महेश को दिया और कहा, आपकी बेटी की बातों से साफ़ है कि जो बैग मिला, वह रमेश का नहीं था। जब तक तीस सिक्के खोने वाली बात आदमी शिकायत दर्ज नहीं कराता, तब तक इसे आप रखिये। रमेश यह सुन कर सन्न रह गया। उसने स्वीकारा की वह झूट बोल रहा था, पर तब तक देर हो चुकी थी।
अक्सर हम लालच के चलते असली दौलत गवां देते हैं।
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