राजू, चतुर बालक और खोया गधा।
एक बालक की कहानी, जिसकी बुद्धिमत्ता से मुश्किलें हल होने की उम्मीद जागी।
राजू अपने गधे के साथ जंगल पर कर रहा था। उसने गधे की पीठ पर चार बोरी आटा लाड रखा था, जिसने वह बाजार में बेचने ले जा रहा था। रास्ते में वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया। उसने गधे को चारा दिया, खुद भोजन किया और वहीं सो गया। जब आंख खुली, तो देखा की गधा गायब है। परेशान राजू गधे को ढूढ़ने निकला। राजू ने हर आने-जाने वाले से पूछा, पर कुछ पता ही नहीं चला।
तभी उस रास्ते से एक लड़का गुजरा। राजू ने उससे पूछा, क्या तुमने रास्ते में कोई गधा देखा है? लड़का बोला देखा तो नहीं, पर क्या वह गधा अंधा है? राजू बोला, हां। लड़के ने फिर पूछा, क्या वह दाये पैर से लंगड़ाता है? राजू बोला, हां। लड़के ने फिर पूछा, क्या उसने आंटे की बोरियां लाद रखी हैं?
यह सुनते ही राजू ने गरजते हुए कहा, ऐ लड़के, चुपचाप बता दो तुमने मेरे गधे को कहां देखा है। वरना गधा चुराने के जुर्म में तुम्हे नदार करवा दूंगा। लड़के ने कहा कि उसने गधे को नहीं देखा, पर राजू ने उसे पंचों के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया। पंचों ने पूरा मामला समझा, फिर लड़के से पूछा, हम कैसे मान लें तुमने गधे को नहीं देखा?
लड़का बोला, मैं जब उस रास्ते से जा रहा था, तो मैने गधे के पैर के निशान देखे। तीन पैरों के निशान दिखे, पर पर चौथे पैर का निशान हर जगह आधा ही था। मैं समझ गया कि वह गधा दाएं पैर से लड़खड़ाता है। फिर मेने गौर किया कि रास्ते की बाई तरफ की घास थी, पर दाई तरफ की नहीं थी। यानी वह बाई आँख से भी अंधा था। और फिर मुझे कुछ जगहों पर आटा गिरा हुआ दिखा, जिससे मैं समझ गया कि गधा जरूर आटा ढो रहा था।
जब राजू ने मुझसे पूछा, तो मैने अपनी सारी जिज्ञासाएं उसके सामने रख दीं। पर मैं पाँव के निशानों से उसे जरूर ढूढ सकता हूं। पांचो ने लड़के की तारीफ़ की और उसे राजू की मदद के लिए कहा।
कई बार हम अनजाने में अपने हितेषियों को दुश्मन मान बैठते हैं।
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