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RE: हमारा परम धर्म : दान ---- (भाग – ३)
ज्यादा पुण्य करने के लिए ज्यादा धन चाहना गलती है । कीचड़ लगा कर धोने की अपेक्षा कीचड़ न लगाना ही बढ़िया है । दान-- पुण्य करना एक टैक्स है, जो धनी लोगों पर ही लागू होता है । टैक्स देने के लिए धन कौन चाहता है ?
सबके सुखकी इच्छा बहुत बड़ा दान है । निर्धनता धन आने से नहीं मिटती, प्रत्युत धनकी इच्छा छोड़ने से मिटती हैं । सेवासे जड़ता मिटती है और चिन्मयता आती है ।
संसार की जितनी जानकारी ( साक्षरता ) बढ़ेगी, उतने राग-द्वेष, अशान्ति संघर्ष बढेंगे । संसार की जानकारी काम की नहीं है । उससे ज्यादा आफत होगी । भगवान की जानकारी बढ़ेगी तो शान्ति होगी ।