The Last Letter
शाम ढल चुकी थी। गडेरिये अपने मवेशियों को हाँकते हुए अपने घरों की ओर लौट रहे थे और आसमान में परिंदों का झुंड अपने घोसलों की ओर। शाम जैसे जैसे गहराती जा रही थी, आसमान में पूरा चाँद चमकने लगा था और उस से झरकर चाँदनी पूरे फ़िज़ाओं में फैल रही थी। घरों में दिये जल चुके थे और दूर मंदिरों में बज रहे घंटियों की मद्धिम आवाजें हवाओं में तैर रही थी। ऐसे में एक जोड़ी पायलों की खनक लगातार मेरे करीब आती जा रही थी। वो जैसे – जैसे मेरे करीब आ रही थी, मेरी धड़कनें तेज होती जा रही थी।
हम पिछ्ले कई दिनों से नहीं मिले थे। आज सुबह उसने अपनी सहेली से संदेश भिजवाकर यहाँ नदी किनारे मिलने के लिये मुझे बुलाया था। वो मेरे पास आकर रुक गयी। मैने उसकी आँखों में देखा। उसकी आँखें लाल थी, या तो वो पिछ्ले कई रातों से सोई नहीं थी या फिर यहाँ आने से पहले बहुत रोई थी। उसकी सुर्ख भीगी आँखें और थरथराते लब मुझे बैचैन करने के लिये काफी थे। मैं उस से कुछ पूछता इस से पहले उसने कांपते हाथों से मेरी हथेली पर कागज का एक टुकड़ा रखा और “आज के बाद हम फिर कभी नहीं मिलेंगे…..हो सके तो हमें भूल जाना” कहकर फुट – फुट कर रोने लगी और फिर वहाँ से चली गयी। मैने उसे रोकना चाहा लेकिन वो नहीं रुकी। मैने देखा वो कागज जगह – जगह आँसुओं से भीगा था। मैने सावधानी से उसे खोला और चाँद की रौशनी में धडकते दिल से उसे पढने लगा …..
“……मैं माफी चाहती हुँ कि कुछ दिनों से मैं तुमसे नहीं मिल पाई। दरअसल अम्मी और अब्बा जान को हमारे बारे में पता चल गया और उन्होनें मेरा स्कूल जाना बंद करा दिया है। परसों रामगढ से मुझे देखने लड़के वाले आये थे। अम्मी जान कह रही थी कि वहाँ उनका बहुत बड़ा बंगला है और वे बहुत पैसे वाले हैं। उनके पास 2 विदेशी मोटरकारें भी हैं…. मेरा और तुम्हारा मजहब अलग अलग है। हम चाह के भी एक नही हो सकते। मुझे पता है तुम्हें यह पढ़कर बुरा लग रहा होगा लेकिन बताओ मैं क्या कर सकती हूँ? मेरे अब्बू नहीं मानेंगे…. हो सके तो मुझे भूल जाना और मेरी चिट्टिठियों को जला देना। तुम्हें मेरी कसम है, मेरी गलियों से तुम कभी नहीं गुजरोगे। नदी के उस पार पीपल के पेड़ पर तुमने अपने नाम के साथ मेरा नाम लिखा था उसे मिटा देना और अपने दोस्तों से कहना कि मेरा नाम लेकर तुम्हें कोई कसम ना दे। अपना ख्याल रखना और अपने सपनों को अच्छे से पूरा करना। वो अँगूठी जो तुमने दोस्तों से पैसे उधार ले कर मेले में खरीदकर मुझे दी थी, उसे मैं सलमा के हाथों कल भिजवा दूँगी। अब्दुल कह रहा था कि वो मेरे लिये सोने की अँगूठी लायेगा…..”
खत पढ़ते पढ़ते अचानक मेरी आँखों से दो बूँद निकले और पलकों के कोरों को भिगोते हुये ज़मीन पे गिरकर बिखर गये। चाँद बादलों की ओट में कहीं छिप गया था और झिंगुरों की आवाजें भी सन्नाटे में कहीं खो गयी थी। मैं थोड़ी देर जड सा वहाँ खड़ा रहा, फिर आँसुओं को पोछ धीरे से मुड़ा और साइकिल की पुरानी सीट को ठीक कर धीरे – धीरे ढलान से नीचे उतर कर जाने लगा, पता नहीं कहाँ …….!
"चलो ढूँढता हूँ कोई ऐसी वज़ह कि दिल बहल जाये
अगर हम फिर भी ना संभल पाये तो क्या तुम लौट आओगी..?
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Victim of grumpycat?
Wonderful , keep it up brother
Thank you bro @abhishektechguru
अच्छी कहानी है सर, मेरी पोस्ट भी पढ़ लीजिएगा...अगर अच्छा लगे तो वोट करना.. वरना कोई बात नहीं