कर्म योग
नमस्कार मित्रो आज मै आप को कर्म योग के बारे में बताऊंगा।
आज मै आप को श्रीमद भगवत गीता के द्वारा कर्म योग के बारे में बताऊंगा। जब महाभारत में युद्ध का आगाज हो गया। तब अर्जुन ने रड भूमि में अपने ही परिजनों को देखा। और भगवान श्री कृष्णा से बोले हे केशव मै ये क्या कर रहा हु अपने ही परिवार जनो को मरने का सोच रहा हु। इनको मार के मुझे स्वर्ग का राज्य भी प्राप्त हो जाये तो मेरे लिए। वो व्यर्थ है। इससे अच्छा मै सन्यास धारण कर लू तब भगवान श्री कृष्णा उनसे कहते है समाज के प्रति अपने कर्मो का त्याग करने का परिणाम है की आज ऐ युद्ध हो रहा है। क्यों की सभी धर्म ज्ञानी समाज के प्रति अपने कर्मो का त्याग करके। अपने कर्म से मुख मोड़ लेते है।
जिस तरह किचड़ का पानी भाप बन के उड़ जाता है और किचड़ वही पड़े रहता है उसी तरह अच्छे लोग समाज से सन्यास लेके अपने कर्मो का त्याग कर देते है और बुरे लोग हमारे समाज को चलाते है। इसलिए हमें अपने कर्मो का त्याग ना करके समाज में रहकर एक सन्यासी की भाती समाज की सेवा करनी चाहिए।
श्रीमद भगवत गीता में भगवान श्री कृष्णा कहते है की मनुस्य को समाज के प्रति अपने कर्मो का त्याग नहीं करना चाहिए। समाज में रहकर इन मोह माया में न लिप्त होकर अपना कर्म करते रहना चाहिए। इससे समाज को भी लाभ होगा और हमें भी उसका पुन्य मिलेगा।
जिस तरह वृक्ष का काम है फल देना और उसकी जड़ो सिराओ का काम है उसे जीवित रखना वृक्ष को किसी से कुछ अपेछा नहीं रहती। वृक्ष समाज से कुछ आसा नहीं रखता। उसी प्रकार हमें भी समाज के प्रति अपने दायित्यो का त्याग नहीं करना चाहिए। फल देना न देना ईस्वर के हाथ में है। हमें बस अपने कर्तव्य के मार्ग पे अग्रसित रहना चाहिए उससे विमुख नहीं होना चाहिए।
इसलिए हमें समाज के प्रति अपने कर्म का त्याग नहीं करना चाहिए और सदा धर्म के मार्ग पे चलते रहना चाहिए।
ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय नमः