जय श्री सदगुरू देव भगवान
उर्ध्वगामी अलल पक्षी, गति गमन गम घर चले।
अर्ध उर्ध्व विवेक गति बन, पन्थ निज समझ भले।।
डगमगाता नहिं चले, सीधे गगन मुख धावता।
पहुँच अपने देश को, जहँ मधुर स्वर ध्वनि गावता।।
इन दोहों में स्वामीजी ने ऊपर की ओर प्रयाण करनेवाले अलल पक्षी की तुलना करते हुए अमरलोक(ऊर्ध्वलोक) में गमन करने के लिए साधक को कैसे आगे जाना होता है, इसका विवरण प्रस्तुत किया है। अलल पक्षी आकाश में उस स्थान पर रहता है, जहाँ यह माना जाता है कि वहाँ पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण समाप्त हो जाता है। अलल पक्षी उस स्थान से कुछ नीचे आकर अण्डा देता है। वह अंडा पृथ्वी के धरातल पर आने के पहले ही फुट जाता है। उसमें से निकला शिशु पक्षी अपने माता-पिता के निवास गगन की ओर बढ़ने लगता है और बिना इधर-उधर भटके हुए उर्ध्व गति से उड़ते हुए अपने निवास स्थान में पहुँच जाता है। क्या आपलोग इस अलल पक्षी को कभी देखा है या कहीं सुना है? सायद हमलोगों में से कोई नही देखा होगा न सुना होगा। मगर यह पक्षी होता है। तभी प्राचीन ऋषियों ने वेद में 'सुपर्णोसि' नाम से जिक्र किया है। इस अलल पक्षी की उपमा देते हुए सद्गुरु सदाफलदेव जी महाराज कहते हैं कि इसी प्रकार से आत्मा भी सद्गुरु के ज्ञानोपदेश से अपने चेतन रूप का ज्ञान प्राप्त कर अपने चेतन घर(अमरलोक) अपनी चेतन सुरति के द्वारा पहुँच जाता है, जहाँ उसका अपना निवास है। वहाँ पहुँच कर वह सोमरस एवं मधुर शब्द-ध्वनि का पानकर आनन्दित होता है। स्वामीजी ने 'शब्द प्रकाश' के एक भजन में यह संकेत देते हुए कहा है--सुरति उलटि अवलोक जी, तोहि पीव मिलेंगे। अब अपने लेखनी को यही पर विराम देता हूँ।जय हो जय श्री सदगुरू देव भगवान की
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