मुसलमानों के लिए क्यों खास है जुम्मे की नमाज
अस्सलाम वालेकुम दोस्तों फिर से हाजिर हूं एक नई खबर के साथ आज हम बात करेंगे नमाज के बारे में दोस्तों नमाज एक ऐसी इबादत है जो हमें जन्नत तक पहुंचा देगी नमाज मेरे नबी की आंखों की ठंडक है।
इस्लाम और नमाज मुसलमान होने की बुनियादी है कि कोई शक्स अल्लाह को मानता हूं और नमाज पढ़ता हूं इस्लाम में पांचों वक्त की नमाज पढ़ना जरूरी है और इसको बिलकुल भी छोड़ा नहीं जा सकता।
सफर में भी एक मुसलमान को नमाज पढ़ना जरूरी होता है लेकिन इस दौरान नमाज पढ़ने की प्रक्रिया छोटी कर दी जाती है।
मुसलमानों की सामान्य तौर पर नमाज पढ़ने के लिए जितना समय लगता है सफर में वह आधा हो जाता है।
नमाज पढ़ने के लिए किसी शख्स का पाक शरीर से लेकर कपड़े तक पर गंदगी ना हो होना जरूरी है साथ ही जिस जगह पर वह नमाज पढ़ते हैं वह भी पाक हो और साफ़ हो।
एक मुसलमान कभी भी नमाज पढ़ सकता है बस उसकी शर्त यह है कि वह जगह पाक-साफ हो क्या ऐसी जगह है जहां इस्लाम नमाज पढ़ने के लिए रोकता है?
इस सवाल पर इस्लाम के विधान मौलाना अब्दुल हमीद नोमानी कहते हैं शरीयत इस्लामी कानून के हिसाब से पूरी जमीन पार्क है और कई शख्स कहीं भी नमाज पढ़ सकता है।
वह आगे कहते हैं अगर कोई जमीन छीनी हुई है और अवैध रूप से कब्जा की हुई है तो उस पर नमाज नहीं पढ़ी जा सकती है लेकिन कोई सरकारी जमीन है और उस पर किसी का कब्जा नहीं है तो वहां नमाज हो सकती है उस जमीन का साफ होना जरूरी है।
क्या इस्लाम किसी दूसरे इंसान की जमीन पर उसकी मर्जी के खिलाफ नमाज पढ़ने की अनुमति देता है इस सवाल पर उन्होंने कहते हैं कि अगर जमीन के मालिक ने मना कर दिया तो शरीयत के अनुसार उस जगह पर नमाज नहीं पढ़ी जा सकती है।
सरकारी जमीन पर क्या नमाज पढ़ी जा सकती है इस पर वह आगे कहते हैं कि सरकारी जगह या पहले से किसी जगह पर नमाज पढ़ी जा रही है तो वहां नमाज हो सकती है।
जुम्मा क्यों है खास अगर इस्लाम में दिन में पांच वक्त की नमाज पढ़ना जरूर है इनको पांच वक्त में बांटा जाता है सुबह की नमाज को फजर दोपहर की नमाज को जो हर शाम से पहले आंसर शाम के वक्त को मगरी और आधी रात से पहले पढ़ी जाने वाली नमाज को ईशा की नमाज कहा जाता है।
मगर S5 नमाजों में शुक्रवार के दिन तबले की होती है इस्लाम में शुक्रवार जुम्मे के दिन की खांसी अहमियत है इस दिन को एक दूसरे के साथ जुड़ने का दिन बताया गया है ताकि लोग एकता दिखा सके.
इस वजह से शुक्रवार के दिन दोपहर की नमाज के वक्त जोहर की नमाज की जगह जुम्मे की नमाज होती है जुम्मे की नमाज अगर कोई नहीं पड़ सकता है तो उसे जोर की नमाज पढ़ना चाहिए जुम्मे की नमाज की शर्त यह है होती है कि वह एक साथ मिलकर जुलकर पढ़ी जाती है इसे अकेले नहीं पढ़ा जा सकता है इस नमाज के दौरान खुतबा होता है।
भदोही। नसीरे मिल्लत मौलाना नसीरुद्दीन (घोसी) ने नमाज कायम करने पर जोर दिया। कहा कि आज इल्म की अहमियत हर कोई समझता है। हर मां बाप अपने बच्चों को बेहतर से तरबियत दे। उन्हें जिंदगी का असल तरीका सिखाए। दुनियाबी इल्म हासिल करें लेकिन दीनी इल्म से महरूम न रहें। वह शनिवार की रात मदरसा अरबिया मदीनतुल इल्म पीरखांपुर के दस्तारबंदी के मौके पर बरकाते रजा कांफ्रेंस को खिताब कर रहे थे।
जुम्मे की नमाज़ बहुत ही खास होती है इसलिए इसकी अहमियत बहुत ज्यादा है।
दोस्तों आशा करूंगा कि यह आर्टिकल आपको अच्छा लगा होगा यह एक इस्लामिक आर्टिकल था जो कि जुम्मा के लिए मैंने लिखा है और बहुत ही खास है आशा करूंगा आप सब को यह आर्टिकल अच्छा लगा होगा दोस्तों ऐसे ही रोमांचक आर्टिकल आपको रोज में देता रहूंगा प्लीज आप मुझे वोट देना और फॉलो करना ना भूलें धन्यवाद दोस्तों जुम्मा मुबारक हो आमीन।
@raamiz upvot and follow me thanks.
jumma mubarak dear
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