आस्तिक बने या नास्तिक
शुभ संध्या दोस्तों
वर्तमान वैज्ञानिक युग में आधे अधुरे ज्ञान के ज्ञानीजनो की भरमार इतनी अधिक हो गयी हैं, वो अपना अधिकांश समय लोगो को भ्रमित करने में ही व्यतीत करते हैं।
इन्सान या तो पूरा जानकार हो, अथवा बिल्कुल अज्ञानी हो, तभी वो सुखी हो सकता हैं। इन्सान किसी का मर्गदर्शक तभी बन सकता हैं, जब वो सम्बंधित विषय का जानकर हो, आधी अधुरी जानकारी के आधार पर सिर्फ भ्रमित किया जा सकता हैं।
खेर ! हमारा विषय हैं, इन्सान को आस्तिक होना चाहिए या नास्तिक। जब ये प्रश्न स्वामी रामसुख दास जी महाराज को पूछा गया तो स्वामीजी ने बहुत ही उत्तम विचार व्यक्त किये। स्वामीजी के अनुसार नास्तिक होने से आस्तिक होना अच्छा हैं। पूज्य स्वामीजी का मानना हैं कि आस्तिक विचारधारा ही नकारत्मकता से ओत प्रोत हैं। इससे हमारे अन्दर नकारत्मक उर्जा का संचार होता हैं। जिसके कारण हमारा मनोबल और कार्यक्षमता दोनो प्रभावित होते हैं।
उनका विचार हैं कि आस्तिक के अनुसार ईश्वर होता हैं, ईश्वरीय शक्ति हमारे जीवन को प्रभावित करती हैं, जबकि नास्तिक के अनुसार ईश्वर नही होता और न ऐसी कोई शक्ति हैं जो हमें या हमारे जीवन को प्रभावित करती हैं। आस्तिक के विचार के अनुसार मान लिया जाय और ईश्वरीय सत्ता को स्वीकार कर उनका पूजन करना अथवा भक्ति करना या अपने जीवन में ईश्वर की आराधना को महत्व दिया जाय तो बेहतर हैं।
यदि नास्तिक विचारधारा को मानकार ईश्वरीय सत्ता को नकार दिया जाय और किसी भी प्रकार की पूजा आराधना को नही किया जाय, ये सब दिखावे अथवा ढकोसले हैं, ऐसा मान लिया जाय।
पर वास्तव में यदि ईश्वर की कोई सत्ता हैं, तो ?
पूजा आराधना का कोई महत्व जीवन में हैं तो?
ईश्वरीय सत्ता हमारे जीवन को प्रभावित करती हो तो?
आस्तिक का तो भला हो जाएगा, पर नास्तिक का क्या होगा?
यदि नास्तिक के विचारो को मान लिया जाय, तो आस्तिक का क्या बुरा हो जाएगा?
पर आस्तिक की बात को सच मान लिया जाए, तो नास्तिक का बहुत बुरा हो सकता हैं।
इसके अलावा भी बहुत से कारण हैं, जिनके आधार पर हमें आस्तिक होना ही चाहिए।
आस्तिकता से जीवन में आध्यात्मिकता आती हैं, ध्यान, योग आदि से जीवन न सिर्फ सात्विक बनता हैं, बल्कि इनसे जीवन निरोग बनता हैं। ध्यान और योग से एकाग्रता आती हैं, जो शरीर और दिमाग को शान्ति के साथ सोचने समझने की शक्ति प्रदान करती हैं। एकाग्रचित्त मनुष्य सही व सटीक फैसले लेने में सक्षम होता हैं।
जबकि नास्तिक व्यक्ति इन सब को ढोंग समझता हैं व इनसे दूरी रखता हैं। इसलिये वो इनके लाभ नही ले सकता।
हाँ ये बात मानने योग्य हैं, कि ईश्वर की सत्ता को समझ कर इस पर विश्वास होना चाहिए, किसी मनुष्य के विचारों के अनुसार अन्धविश्वास नही होना चाहिए। ध्यान हो, योग हो, आस्था और श्रद्धा हो, पर अन्धविश्वास और कर्मकांड नही हो। मन्त्रोच्चार के शब्दो में शक्ति हैं, उनका विधिवत उच्चारण और उसी के अनुसार विधि विधान हो, पर बेमतलब का कर्मकांड न हो।
नमस्कार
शुभ रात्री।
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