पधारो म्हारे देश
नमस्कार दोस्तों
कैसे हैं आप सभी, आसा करता हूँ, अच्छे बहुत अच्छे होंगे, क्योकि क्रिप्टो से जुड़े हर इंसान के फिलहाल तो मौज ही मौज हो रही हैं।
खेर आज की पोस्ट एक ऐसी संस्कृति की हैं, जहां प्रकृति ने तो रंग बिखेरने में कंजूसी की हैं, लेकिन यहां के लोगो ने स्वयं ही अपने जीवन मे इतने रंग भर दिए हैं, जिन्हें देखकर स्वयं ये कायनात भी अपनी भूल पर पछता रही होगी।
जी हां दोस्तो
मैं बात भारत के दक्षिण पश्चिमी राज्य राजस्थान के पश्चिमी भाग की कर रहा हूँ, जहां यदि कभी जाओ, तो दूर दूर तक रेत का समंदर दिखेगा, जहां हरियाली का नामोनिशान तक नही हैं, किंतु यहां के लोगो के जीवन मे बहुत से रंग हैं।
आज की पाश्चात्य संस्कृति जहाँ नग्नता और भोंडापन को अपनी शान मानती हैं, वहीं यहां के लोग 40 डिग्री तापमान में भी पूरे वस्त्रों में बहुत ही शान से दिखेंगे, पूरे आत्मसम्मान के साथ।
जीवन बहुत ही सादा
पर विचार, बहुत ही उच्च कोटि हैं।
अपनी मातृभूमि, अपनी इज्जत, अपनी आन बान ओर शान, अपनी माँ (अर्थात स्त्री के सम्मान के लिए) और गाय के लिए कुर्बान होने की परंपरा सदियों से अनवरत चली आ रही हैं।
यहां के गढ़, कोट, दुर्ग पूरे विश्व के लिए आकर्षण के केंद्र तो हैं ही, ये अपने आप मे अपनी मर्यादा ओर मातृभूमि के लिए मर मिटने वालो की अनेक गाथाओं के साक्षी भी हैं।
हो सकता हैं, विश्व मे इनके अनेक सानी हो, पर जिन हालातो के ये साक्षी रहे हैं, जिन हालातो में इन्होंने अपने आप को बनाया हैं, ऐसे उदाहरण विश्व मे कहीं नही मिल सकते। क्योंकि जो जज्बा यहां के लोगो मे अपने आत्मसम्मान का हैं, ऐसा ओर कहीं सम्भव ही नही।
ये चित्र जोधपुर के मेहरान गढ़ दुर्ग और जसवंत थड़ा के हैं। जहां यदि आज भी हम जाएं, तो हमे उस काल का जीवंत आभाष होता हैं, कि उस समय मे भी यहां के जीवन मे एक तरफ कितने रंग रहे होंगे तो दूसरी तरफ इनके जीवन मे कितने संघर्ष रहे होंगे।
आओ कभी, मिल बैठ के यहां की और बहुत सी बातें आपको बताऊंगा, जो इस पोस्ट में नही बता पाया।
"पधारो म्हारे देश"