#3.3 - Unveiling our truths (An Original Hindi Poetry)
Concept No. 3 - BREAK THE CHAINS ! (Poetry)
अगले घर तुझे जाना है, उनके तानो से खुद को बचाना है |
बाँध दिआ मुझे बचपन से ही, मेरे भविष्य की असमंजस में,
भूल के अपना बचपन, मैं डूब गई आने वाले कल में |
टोकते थे मुझे मेरे ही लोग, सही गलत मुझे बताते थे,
कोई पूछे उनसे, की सही गलत के ये फैसले,
कौनसे भगवान् उन्हें आकर बताते थे?
अपनी नज़रो से जो मुझे आजीवन तोला उन्होंने,
इस तोल मोल का हक़ सिर्फ खुदा के पास है,
ये सही-गलत, जो हर किसी के हिसाब से अलग, है,
उसमे मुझे आज़माने का, क्यों सबका अपना हिसाब है?
मैं अकेली नहीं बैठी, हुई इस तराज़ू पर,
सिर्फ लड़कियां नहीं, बहुत लड़के भी मेरे साथ हैं,
जिनके जन्म लेते ही लोगों ने फैसले ले डाले,
क्यों भूढ़े तख्तो पर, पहले से लिखी हर बच्चे कि किताब है |
ये वो सीमा बताते हैं, जहाँ तक मेरी हसीं कि आवाज़ जा सकती है,
ये निर्णय करते हैं, लड़कियां क्या नहीं कर सकती हैं,
ये हमारे पहनावे से इतना परेशान आ जाते हैं,
क्योंकि गड़ा कर नज़रे हम पर,
ज़मीर इनके खुद के हिल जाते हैं |
अपनी गलतियों से हार कर, हमारी जीत में रूकावट बन जाते हैं,
कभी ये हमारी जगह थे एक दिन,
अब हमें अपनी जगह बुलाने का कारण ये बन जाते हैं |
परिभाषा बनाके सलीके की, ये ढोंग करना सबको सिखाते हैं,
हम खुद को जान पाते ही नहीं, बस इनकी नाटकी दुनिया में,
एक और कटपुतली बन कर जुड़ जाते हैं |
कोई और ही होती आज मैं, कोई और ही होते तुम,
अगर लोगों को लुभाने का, इतना ना होता जूनून,
पर हुई नहीं है देर आज भी, क्योंकि अभी भी तू ज़िंदा है,
पंख अपने खोल के तो देख, तू अभी भी वही परिंदा है |
तोड़ दे ये बेड़ियाँ, वरना अपनी काबिलियत से अनजान रह जाएगा ,
तेरे बस में कारनामे हैं जितने भी, उन्हें दुनिआ के सामने, कभी ना ला पाएगा |
शायद चाँद तक भी ना पहुँच पाते हम,
अगर सलाखे ये हमने तोड़ी ना होती,
क्योंकि दुनिआ के हिसाब से चलते तो,
ऐसे ख्वाब पर खूब हसीं उड़ी होती |
जाने कितना कुछ आज तक, रहस्य रह जाता,
अगर इंसान कभी इस कैदखाने से, बाहर नहीं आता,
ये कैदखाने जो कुछ दुनिआ ने बना रखे हैं,
और कुछ इनमे से, हमने खुद रचा रखे हैं |
गलती तो उनकी भी थी, गलती थी कुछ समाज की,
कुछ गलती थी मेरे अपनों की,
गलती सबसे बड़ी थी जिसकी, वो मेरी थी |
अब सुधार ले उन गलतियों को,
और तोड़ दे सभी हथकड़ियां,
चाहे रोका हो तुझको सबने,
या खुद ने बंद कर रखी हो सब खिड़कियां,
बहुत कुछ है दुनिया में अभी भी,
जो तू बदल सकता है,
पहचान खुद को ए कैदी,
तुझे कैदी इसलिए ही बनाया गया,
क्योंकि तु दुनिया को बदल सकता है |
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SUMMARY
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Great work again!
Thank you Rohit :)
So you just copy and past other people's work? 😂
This poetry is written by me @amberox. What are you talking about ?