poetry

in #india6 years ago

चाहत से नफरतों को मिटाता चला गया।
वो रूठते रहे मैं मनाता चला गया।

कुछ इस तरह ग़ज़ल में कही अपनी दास्ताँ
सब रो रहे थे और मैं सुनाता चला गया।

जो मुस्कुराहटें थीं बहुत ही उदास थीं
मैं आंसुओं को फिर भी हँसाता चला गया।

बाहर के बुतघरों में न सजदा किया कभी
घर में रखे बुतों को जगाता चला गया।

जिन पत्थरों की चोट से घायल हुआ बहुत
उन पत्थरों से घर को बनाता चला गया।

कुछ मामलों में सच कहूँ बिल्कुल फकीर हूँ
अपने कमाए अश्क़ बहाता चला गया।

उनको नहीं पसंद कि मैं संगदिल बनूँ
दिल मोम का बना के गलाता चला गया।

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@partiko i used it but i didn't get

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