यष्टिमधु

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मुलहठी अथवा यष्टिमधु संस्कृत में एक अत्यन्त प्रसिद्ध आयुर्वेदिक औषधि है। तस्य वैज्ञानिक नाम मुलेठी अस्ति। एषा जड़ीबूटी अत्यधिक पौष्टिकता एवं चिकित्सा गुणों से सम्पन्न है। यष्टिमधु आयुर्वेदे 'रसायन' (रोगों के निवारण तथा शरीर की उन्नति के लिए) औषधियों के रूपेण प्रसिद्धा अस्ति।

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मुलहठी के गुण एवं उपयोग

  1. स्वास सम्बन्धी विकार :

    • यष्टिमधु स्वरभंग, श्वासकष्ट, कफ आदि का शमन करती है।
    • कफोत्सारक गुण के कारण यह कास, श्वास, ब्रोन्काइटिस, और श्वासकष्टजन्य विकारों में लाभकारी अस्ति।
    • कंठ के शीतलन एवं श्वास के विकारों के निवारण हेतु यष्टिमधु का प्रयोग किया जाता है।
  2. पाचनतंत्र :

    • यष्टिमधु पाचनाग्नि को उत्तेजित करती है एवं अजीर्ण, अपच, पेट दर्द, अम्लपित्त एवं गैस की समस्या को दूर करती है।
    • यह आहार नलिका की सूजन को कम कर पेट के घावों (जैसे अल्सर) को भी शान्त करती है।
    • मल त्याग में सहायक, यह हल्का रेचक रूप में कार्य करती है।
  3. वातपित्तकफ संतुलन :

    • यष्टिमधु वात एवं पित्त के संतुलन हेतु अत्यन्त उपयोगी है। यह शरीर में शीतलता एवं लुब्रिकेशन प्रदान करती है, अतः वात विकारों में लाभकारी अस्ति।
    • कफवृद्धि एवं कफजन्य रोगों के उपचार में भी यष्टिमधु सहायक होती है।
  4. प्राकृतिक विरोधक एवं सूजन निवारक :

    • यष्टिमधु में ग्लाइसिर्रिज़िन नामक प्रमुख यौगिक पाया जाता है, जो शरीर में सूजन को कम करने में सहायक होता है।
    • एंटीऑक्सीडेंट गुणों के कारण यह शरीर के अंगों को मुक्त कणों से बचाती है और दीर्घकालिक रोगों से रक्षा करती है।
  5. मानसिक एवं तंत्रिका स्वास्थ्य :

    • यष्टिमधु मानसिक स्वास्थ्य को भी सुधारने में सहायक है। यह तनाव, चिंता, और अवसाद के लक्षणों को कम करने में प्रभावी है।
    • यह तंत्रिका तंत्र को शान्त करती है और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता बढ़ाती है।
  6. त्वचा की देखभाल :

    • यष्टिमधु त्वचा संबंधी विकारों जैसे मुंहासे, घाव, और सूजन को कम करती है।
    • यह त्वचा को पुनर्निर्माण करती है, त्वचा पर चमक एवं सौम्यता लाती है।
  7. हॉर्मोनल संतुलन :

    • यष्टिमधु महिला जननांगों के स्वास्थ्य के लिए भी उपयोगी है। यह मासिक धर्म की अनियमितता को ठीक करती है और रजोनिवृत्तिक महिलाओं में लक्षणों को शमित करती है।
    • यह स्त्री हार्मोन के समान प्रभाव उत्पन्न कर सकती है, जिससे यह प्रजनन स्वास्थ्य को समर्थन प्रदान करती है।
  8. जिगर और पाचन तंत्र का समर्थन :

    • यष्टिमधु लीवर की कार्यप्रणाली को सुधारने में सहायक होती है और शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करती है।
    • यह यकृत के स्वास्थ्य को उत्तेजित करती है और उसकी सफाई करती है।

**प्रमुख सक्रिय यौगिक **:

  • ग्लाइसिर्रिज़िन – सूजन कम करने वाला और एंटीवायरल गुण प्रदान करने वाला यौगिक।
  • ग्लाब्रिडिन – एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट।
  • लिक्विरिटिन – सूजन कम करने और सेल नष्ट होने से बचाने वाला यौगिक।

विधि और सेवन:

  1. पाउडर:
    यष्टिमधु को चूर्ण रूप में लिया जाता है। इसे पानी, शहद या दूध में मिलाकर लिया जा सकता है।

  2. चाय:
    यष्टिमधु की छाल या जड़ का उबालकर चाय बनाई जाती है, जिसे कफ या श्वास संबंधित समस्याओं में लाभप्रद माना जाता है।

  3. सिरप या अर्क:
    यष्टिमधु के अर्क और सिरप उपलब्ध होते हैं, जिनका उपयोग विभिन्न रोगों के उपचार हेतु किया जाता है।

  4. सामान्य रूप से:
    इसका उपयोग आयुर्वेदिक चूर्णों (जैसे त्रिफला, च्यवनप्राश आदि) में भी किया जाता है।

सावधानियां:

  • अत्यधिक उपयोग: अत्यधिक मात्रा में यष्टिमधु का सेवन रक्तदाब को बढ़ा सकता है और पोटेशियम स्तर को घटा सकता है।
  • गर्भावस्था: गर्भवती स्त्रियों को इसका सेवन सीमित मात्रा में या चिकित्सक की सलाह से करना चाहिए।
  • हृदय और किडनी रोग: हृदय रोग और किडनी रोग से पीड़ित व्यक्तियों को इसका सेवन करते समय विशेष ध्यान रखना चाहिए।

निष्कर्ष:

यष्टिमधु एक अत्यन्त प्रभावशाली आयुर्वेदिक औषधि है, जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में संतुलन लाने में सहायक है। यह अत्यधिक गुणकारी है, लेकिन इसका सेवन विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए, ताकि इसके लाभ प्राप्त होते हुए कोई हानि न हो।

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