पर्यावरण के विध्वंस से उजड़ती ये दुनिया -3 [खून की गंगा में तिरती मेरी किश्ती, प्रविष्टि – 18]steemCreated with Sketch.

in LAKSHMI4 years ago (edited)

निरवद्याहार

• निरवद्याहार करने वाला एक व्यक्ति प्रतिदिन साढ़े तीन हज़ार लिटर पानी बचाता है, 21 किलोग्राम अनाज, तीस वर्ग फीट वन-आच्छादित भूमि और 9 किलो कार्बन-डाईऑक्साईड के समकक्ष प्रदूषण को बचाता है और एक निरीह प्राणी की जान भी बचाता है।
• एक निरवद्याहरी, माँसाहारी की तुलना में 50% कम कार्बन-डाईआक्साइड हमारे वायुमंडल में उत्सर्जित करता है, 1/11वां हिस्सा तेल उपयोग करता है, 1/13वां हिस्सा पानी की खपत करता है और 1/18 अंश ही ज़मीन का उपभोग करता है।
• एक व्यक्ति को सालभर भोजन करने के लिए कितनी ज़मीन की आवश्यकता होती है? यह निर्भर करता है उसके आहार के प्रकार पर।
निरवद्याहारी के लिए: 1/6 एकड़,
शाकाहारी के लिए: 3 x (निरवद्याहारी जितनी भूमि)
माँसाहारी के लिए: 18 x (निरवद्याहारी जितनी भूमि)

आज हमारे पर्यावरण को सबसे गंभीर खतरा पशु और उसके उत्पादों पर आधारित उद्योगों से है। इन्हीं की वजह से बड़े पैमाने पर वनों का विनाश, उर्वरक ज़मीन का बंजर होना और उनका रेगिस्तान में तब्दील होना, अवशिष्ट से प्रदूषित पोषक तत्वों की समस्या, ताजे व मीठे पानी का अति-दोहन, ऊर्जा का अनुचित व्यय, मनुष्य के खाने योग्य पदार्थों का पशुओं के लिए प्रयोग करना, ग्रीन हॉउस गैसों का उत्सर्जन जैसी अनेक समस्याएं विकराल रूप धारण करती जा रही है। क्लाइमेट-चेंज (पर्यावरण में परिवर्तन) में औद्योगिक माँस उत्पादन की भूमिका आज हमारे वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी चिंता का कारण बना हुआ है।

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खून की गंगा में तिरती मेरी किश्ती में आगे पढ़ें, इसी श्रंखला का शेषांश अगली पोस्ट में।

धन्यवाद!

सस्नेह,
आशुतोष निरवद्याचारी

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