माना था ख़ुशी की आस जिसे वही आज गम की वज़ह लगता है,.............
माना था ख़ुशी की आस जिसे वही आज गम की वज़ह लगता है,, था कभी ये इश्क़ नेमत ख़ुदा की अब उम्र भर की सज़ा लगता है।
माना था ख़ुशी की आस जिसे वही आज गम की वज़ह लगता है,, था कभी ये इश्क़ नेमत ख़ुदा की अब उम्र भर की सज़ा लगता है।