एक ही तो चैप्टर है काम का
आप कितने अच्छे हैं। हर बार आपके लिए आना पड़ता है। सुना है ज्यादा समझदार हो गए हो।एक-तरफा ही सेंचुरी मार लोगे हैना।
मैं खुद भी नहीं जानता कि किस हद तक मैंने अपने आपको यहां तक ला दिया है। कई बार तो लगता है कि मैं ही हूं यहाँ अकेला, कोई साथ नहीं है। जिससे उम्मीद थी साथ होने की, वो पता नहीं कहाँ है। शायद भीड़ में रह गया है कहीं।
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गलती मेरी ही होगी, मैंने कस्स के हाथ नहीं पकड़ा या हो सकता कि जरूरत से ज्यादा पकड़ लिया हो और वो बुरा मान गया हो। कभी-कभी लगता है कि गलत कर लिया मैंने। इतना कस्स के नहीं पकड़ना चाहिए था कि पता चले उसका हाथ ही मेरा सहारा है और जब वो छूटे तो धड़ाम से गिरना पड़े। पर बता भी तो सकता था वो।
अब 'मजा' आ रहा होगा खूब हैना। इतना ज्यादा कि जब तक अंदर जो है वो बाहर नहीं उलट देता तब तक ये 'मजा' आता ही रहेगा।
भविष्य तो अब देखा नहीं जा सकता। पर भगवान को एक हेल्पलाइन तो देनी चाहिए-सामने वाले के अंदर को समझ सके इतनी तो कम से कम। या फिर माता-पिता को परवरिश के टाइम प्रेम-प्यार का चैप्टर भी शामिल करना चाहिए। ताकि 'हाथ पकड़ने' से पहले संभल तो जाएँ और वो गिरने का 'मजा' भी ना लेना पड़े। काश होता कोई ऐसा चैप्टर, अच्छे से सीख लिया होता।
शिक्षा-प्रणाली को दोष यहाँ भी दिया जा सकता है कि उसने क्यों नहीं इस प्रेम वाले चैप्टर को एडिशनल सब्जेक्ट के रूप में लागू किया।
खैर किसी एक शख्श की गलती के लिए माता-पिता या शिक्षा-प्रणाली को दोष देना कहाँ तक सही है। गलती मेरी ही थी। मैं अपनी गलती स्वीकार करता हूँ।
आप इतनी दूर से यहाँ तक आये हो इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ। यहां से आप ज्यादा कुछ नहीं लेके जाओगे। बस ध्यान रहे ऐसे चैप्टर को हाथ लगाने से पहले अपने अंदर कोई अपेक्षा, उम्मीद मत रखें और सपने तो भूल के भी मत देखना वरना 'मजा' आएगा फिर।
भगवान करे आपको जो मिले सही-सच्चा मिले और ऐसे चैप्टर से दूर रखे तो और अच्छा है। धन्यवाद
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