Concerns चिंतन
Hello brothers and sisters
Since I am seeking to make everyone aware of Indian culture, and the basic spiritual ideology of Indian culture, as soon as understanding Indian spiritual ideology, that Indian will understand.
Indian ideology and even global spiritual ideology recognize the fact that while living in the body, the soul can do well for its welfare. The soul can not do well in any other body.
In today's materialistic age, how we can do self-welfare while doing our cosmic duties for life, its very easy way is explained by the Indian texts and the Rishis, which any person can easily adopt.
Our texts and monks said that at the end of time, the body of the welfare or next birth is determined only on the basis of the meditation of the soul.
That is, in the end time, if the organism remains stuck in material resources, then the soul will be born with such a rebirth as it does with the same body.
If a human body has sacrificed his life while equating the God, God, God, Allah, Isha Christ, Lord Buddha, Lord Mahavir (according to his own favored religion), then he gets salvation.
Pujya Swamiji has said that in the end time, the fate of the fate is possible only if the human beings try to remember their fate at all times, which are easily possible. Keep doing the work, sleeping, awake, eating, remembering your fate at all times, keep praying, "O Nath! I do not forget you".
So easily it will get attention in fate in the end times and will always be freed from the traffic for eternity.
Your opinion on this ideology is acceptable.
If you like it, it will make comments and upsets.
नमस्कार भाइयों- बहिनों
चूंकि मैं भारतीय संस्कृति से सभी को अवगत करवाना चाह रहा हूँ, और भारतीय संस्कृति का मूल आध्यात्म विचारधारा हैं, जैसे ही भारतीय आध्यात्मिक विचारधारा को समझ लेंगे, वेसे ही भारतीयता समझ में आ जायेगी।
भारतीय विचारधारा और यहां तक कि वैश्विक अध्यात्म विचारधारा इस तथ्य को स्वीकारती हैं, कि इंसान शरीर में रहते हुए ही आत्मा अपना कल्याण कर सकती हैं। अन्य किसी भी शरीर में आत्मा अपना कल्याण नही कर सकती।
आज के भौतिकवादी युग में हम जीवनयापन के लिए अपने लौकिक कर्तव्यों को करते हुए आत्म कल्याण कैसे कर सकते हैं, इसका बहुत ही आसान तरीका भारतीय ग्रन्थ और यहां के ऋषियों ने बताया हैं, जिसे कोई भी इंसान आसानी से अपना सकता हैं।
हमारे ग्रन्थों ओर मुनियों ने बताया कि, अंत समय में जीवात्मा के चिंतन के आधार पर ही उसका कल्याण अथवा अगले जन्म का शरीर निर्धारण होता हैं।
अर्थात अंत समय में जीव यदि भौतिक संसाधनों में अटका रहेगा तो वो आत्मा उसी के अनुरूप पुनर्जन्म लेकर वैसा ही शरीर धारण करेगी।
यदि ईश्वर, परमात्मा, प्रभु, अल्लाह, ईशा मसीह, भगवान बुद्ध, भगवान महावीर (अपने अपने इष्ट धर्म के अनुसार) का सुमिरन करते हुए यदि कोई मानव शरीरधारी अपने प्राण त्यागता हैं, तो वो मोक्ष को प्राप्त करता हैं ।
पूज्य स्वामीजी ने कहा हैं, कि अंत समय मे इष्ट की याद तभी सम्भव हैं, यदि मानव हर समय अपने इष्ट को याद रखने का प्रयास करता रहे, जो कि आसानी से सम्भव हैं। काम करते हुए, सोते हुए, जागते हुए, खाते हुए आदि, हर समय अपने इष्ट को याद करते रहो, प्रार्थना करते रहो, " हे नाथ ! मैं आपको भूलू नही " ।
तो आसानी से अंत समय में इष्ट में ध्यान लग जायेगा और सदा सदा के लिए आवागमन से मुक्ति मिल जाएगी।
इस विचारधारा पर आपकी राय सादर प्रार्थनीय है ।
पसन्द आये तो कॉमेंट ओर अपवोट कीजियेगा।
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