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*"बच्चों को समान आयु के दूसरे बच्चों के साथ खेलने कूदने की छूट देनी चाहिए। इससे उनका शारीरिक एवं मानसिक विकास होता है।"*
*"जो बच्चे घर से बाहर नहीं निकलते, पड़ोसी बच्चों के साथ अपनी समान आयु वर्ग के बच्चों के साथ खेलते नहीं, बातें नहीं करते, विचारों का आदान प्रदान नहीं करते, उनका मानसिक और बौद्धिक विकास ठीक से नहीं हो पाता।"*
क्योंकि मनुष्य एक समाजिक प्राणी है। उसे समाज में रहना तथा अन्य लोगों के साथ व्यवहार करना होता है। अतः उसे समाज के नियमों एवं व्यवहार की जानकारी होना भी आवश्यक है। व्यवहार की बहुत सी जानकारी समान आयु वर्ग के लोगों से मिलती है। विचारों का परस्पर आदान प्रदान होने से एक दूसरे का विकास भी होता है। बहुत सा सामान्य ज्ञान (General knowledge) भी प्राप्त होता है। एक दूसरे का परीक्षण भी होता है, कि सामने वाला व्यक्ति या बालक कितना बुद्धिमान है। उससे प्रेरणा भी मिलती है। कोई तेजस्वी बालक हो, तो वह दूसरों को कुछ बातें सिखा भी सकता है। *"इसलिए बच्चों को छोटी उम्र से ही अपने समान आयु वर्ग वाले बालकों के साथ बातचीत करना खेलना कूदना आदि सब कार्य करना चाहिए। खेलकूद से उनका शारीरिक विकास भी होता है, जो कि बहुत आवश्यक है।"*
कुछ बच्चों को माता-पिता घर से बाहर नहीं जाने देते। घर में ही रखते हैं। उन बच्चों को ये सब लाभ नहीं हो पाते। इसलिए बच्चों पर इस प्रकार के प्रतिबंध नहीं लगाने चाहिएं। समान आयु वर्ग के बालकों के साथ खेलने कूदने बातचीत करने की छूट देनी चाहिए। *"हां, इतना ध्यान अवश्य रखना चाहिए, कि पड़ोसी बच्चों के साथ खेलते हुए आपके बच्चे, उनसे कुछ गलत आदतें न सीख जाएँ। उन पर इतनी दृष्टि अवश्य रखनी चाहिए।"* अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि भी हो सकती है। अतः सावधानी का प्रयोग करें, और बच्चों का सही विकास करें।
गलती होने की आशंका से ऐसा न सोचें, कि उस आवश्यक कार्य को किया ही न जाए। यदि कार्य आवश्यक हो, तो करना ही चाहिए, उसमें सावधानी ज़रूर रखनी चाहिए।
*"जैसे कोई व्यक्ति अपचन (बदहजमी) होने के भय से भोजन खाना नहीं छोड़ देता। थोड़ा संभल कर खाता है, ताकि अपचन (बदहजमी) न हो, और भोजन खा कर शरीर की रक्षा भी होती रहे।"* इसी प्रकार से, *"बच्चे पड़ोसियों के साथ खेलकर कभी बिगड़ न जाएं, इस आशंका से उन्हें पड़ोसी बच्चों के साथ खेलने ही न दिया जाए। यह समाधान उचित नहीं है। बल्कि सावधानी रखी जाए और बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए उन्हें खेलने बातचीत करने आदि की छूट भी दी जाय। इसी में बुद्धिमत्ता है।"*