एक बच्चे की परवरिश के लिए पुरे एक गाँव की आवश्यकता हैं (भाग १):
मैं कल एक माँ को कहते हुए सुना के उनके लिए उसके लिए अपने बच्चे को स्कूल भेजने का एक बड़ा कारण ये भी हैं की उस से बच्चे का टाईमपास होता हैं। वरना अगर बच्चा स्कूल नहीं जाए तो उसको दिन भर घर पे सम्भालना बहुत मुश्किल काम है।
मेरे अनुसार बच्चे शहर में किसी पचास बाय तीस के आपार्टमेंट मे रहने के लिए डिज़ाइन नहीं हैं। वे दौड़ने, भागने, उछलने, कूदने, लुढ़कने, चिल्लाने, पेड़ पे चढ़ कर मस्ती करने के लिए बने हैं। एक जगह शांत बैठने, लेक्चर सुनने, होमवर्क करने, स्कूल जाने, या डाँट सुनने के लिए नहीं बने हैं।
बच्चों को शहर के किसी घर में रखना और स्कूल भेजना मतलब शेर को चिड़ियाघर में रखना हैं। शेर चिड़ियाघर में ज़िंदा तो हैं लेकिन ख़ुश नहीं।
अगर घर में बच्चे का टाईमपास नहीं होता तो उसे घर से बाहर जाने दो।बाहर रहना ही उनका स्वभाव हैं। और अगर शहर में उसे बाहर भेजने से डर लगता है तो उसे शहर में रखना समझदारी नहीं है।
वास्तव में हमारे शहर ही बच्चों के लिए डिज़ाइन नहीं हैं। ना ही बुज़ुर्ग लोग के लिए। ना साइकल चलाने वालों के लिए।
शहर सिर्फ़ टीवी देखने, ए॰सी॰ चलाने, आफिस में बैठकर वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए बने हैं।