सत्यार्थ प्रकाश 174
(प्रश्न) अच्छा तो इस का अर्थ कैसा करोगे? (तत्) ब्रह्म (त्वं) तू जीव (असि) है। हे जीव! (त्वम्) तू (तत्) वह ब्रह्म (असि) है।
(उत्तर) तुम 'तत्' शब्द से क्या लेते हो?
'ब्रह्म'।
ब्रह्मपद की अनुवृत्ति कहां से लाये?
'सदेव सोम्येदमग्र आसीदेकमेवाद्वितीयं ब्रह्म।' इस पूर्व वाक्य से।
तुम ने इस छान्दोग्य उपनिषत् का दर्शन भी नहीं किया। जो वह देखी होती तो वहां ब्रह्म शब्द का पाठ ही नहीं है। ऐसा झूठ क्यों कहते ? किन्तु छान्दोग्य में तो-
'सदेव सोम्येदमग्र आसीदेकमेवाद्वितीयम्।'
ऐसा पाठ है। वहां ब्रह्म शब्द नहीं।
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