यूँ कहने को तो पहुँचा है ये इन्सां आस्मानों में
यूँ कहने को तो पहुँचा है ये इन्सां आस्मानों में
मगर इंसानियत फिर भी यहाँ बिकती दुकानों में
नहीं किरदार अब बाकी यहाँ के हुक्मरानों में
ज़मीं तो खा चुके नज़रें गड़ी हैं आस्मानों में
हमारे सर पे होगा शामियाना गर बज़ुर्गों का
रहेगी हर ख़ुशी फिर देखना अपने मकानों में
मुलम्मा झूठ का ग़ज़लों पे मेरी चढ़ नहीं सकता
हक़ीक़त आएगी तुमको नज़र मेरे तरानों में
ग़रीबी, बेबसी, मजबूरियों की तोड़ कर बेड़ी
मैं अपना नाम लिक्खूँगा किसी दिन आसमानों में
कोई उर्दू का दीवाना, कहीं तारीफ़ हिन्दी की
दिलों की बात कर, रक्खा नहीं कुछ भी ज़ुबानों में
कोई जब भी पढ़ेगा तो लगेगा बस उसे अपना
यूँ मैंने लिख दिया हर दर्द अपना इन फ़सानों में
हैं दिल के बादशाह हम भी दिलों पर राज़ करते हैं
हमारा दिल नहीं लगता इन ईंटों के मकानों में
मिटा देते हैं जाँ अपनी वतन के वास्ते 'सागर'
ये जज़्बा है हमारे देश के बाँके जवानों में
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