अमेरिका के विश्वविद्यालयों के सहयोग का फायदा उठाएगा एचएयू
: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार अपने अनुसंधान और शिक्षण कार्यों को अमेरिका के विश्वविद्यालयों के सहयोग से और सुदृढ़ बनाएगा। विश्वविद्यालय ने इसके लिए अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनोइ, वाशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी और मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के साथ अनुबंध किए हैं।
कुलपति प्रो. के.पी. सिंह की उपस्थिति में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (हकृवि) की ओर से मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डॉ. अश्वनी कुमार, यूनिवर्सिटी ऑफ इलीनोइ से केंट डी रोश व डॉ. विजय सिंह ने, मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी से लॉऊ एना साइमन तथा वाशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी से प्रो. कुलविन्द्र गिल ने अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए।
कुलपति प्रो. के.पी. सिंह के अनुसार हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय इन अमेरिकन विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर भविष्य की कृषि पर काम करेगा जिससे न्यूनतम संसाधनों के प्रयोग से कृषि उत्पादन बढ़ाने के अलावा किसानों की आय को दोगुणा करने में मदद मिलेगी।
उन्होंने बताया कि इन द्विपक्षीय समझौतों के तहत हकृवि फैकल्टी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक सहायता तथा पेटैंट प्राप्त करने, फैकल्टी, विद्यार्थियों व प्रगतिशील किसानों का आदान-प्रदान, प्रौद्योगिकी विकास व विस्तार तथा सैंटर ऑफ एक्सेलैंस स्थापित करने की दिशा में कार्य किया जाएगा। इस सहयोग से विकसित की गई प्रौद्योगिकी का एशियाई और अफ्रीकी देशों में भी विस्तार किया जाएगा। संयुक्त अनुसंधान कार्य को अंतिम रूप देने के लिए हकृवि के वैज्ञानिक अगले वर्ष मध्य जनवरी में स्काइप के जरिए वॉशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी के साथ विचार-विमर्श करेंगे।
उन्होंने बताया कि फिलहाल हकृवि वाशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक प्रो. कुलविन्द्र गिल के साथ मिलकर गर्मी को सहन करने में सक्षम गेहूं की किस्म के विकास पर कार्य कर रहा है। इस किस्म के विकास से भविष्य में बढ़ते तापमान से गेहूं की पैदावार पर हो रहे कुप्रभाव से निजात मिल सकेगी क्योंकि एक डिग्री सैल्सियस ताप बढऩे से उपज में 5 प्रतिशत की कमी आ जाती है। उन्होंने बताया कि ये दोनों विश्वविद्यालय चावल की सुगंधित व गैर-सुगंधित किस्मों में सीलिका की मात्रा कम करने पर भी शोध कार्य करेंगे। इससे धान के अवशेषों को पशुओं के चारे के रूप में उपयोग किया जा सकेगा। धान की ऐसी सुगन्धित किस्मों के विकास पर कार्य किया जाएगा जिससे धान की यूरोपियन मार्केट में मांग बढ़े ताकि किसानों को अधिक मुनाफा हो सके।