इस किसान ने बनाये किफायती कृषि उपकरण

in #bitcoin7 years ago

कर्नाटक के धारवाड़ जिले के नवलगुंड तालुक के अन्नीगेरी गांव के रहनेवाले अब्दुल खादर नदाकट्टीन किसान ही नहीं अन्वेषक भी हैं। उन्होंने कृषि कार्यों में मदद के लिए कई तरह की कृषि मशीनें बनायी हैं। अब तक वह 24 मशीन व उपकरण बना चुके हैं। इन मशीनों का इस्तेमाल ट्रैक्टर पर किया जा सकता है। ये मशीनें वह नदाकट्टीन ब्रांड के नाम से बेचते हैं।

ज्यादा से ज्यादा किसानों तक पहुंचने और संगठित तरीके से काम करने के लिए नदाकट्टीन ने अपने गांव में वर्ष 1975 में विश्वशांति एग्रीकल्चर रिसर्च एंड इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट से जो मशीन उन्होंने बनायी है उनमें सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल, आयरन ह्वील, शुगरकेन सोविंग ड्रिलर, ह्वील टीलर व फाइव इन वन टिलर की मांग सबसे अधिक है।

आरएमएल के साथ फोन पर हुए साक्षात्कार में खादर ने एग्रीकल्चर मशीनों और उनकी विशेषताओं के बारे में बताया।

सवाल - आपने कितनी तरह की मशीनें बनायीं और उनका इस्तेमाल कैसे किया जाता है ?

जवाब – अब तक मैं 24 मशीनें बना चुका हूं। इनमें से सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिलर, ट्रैक्टर के लिए आयरन ह्वील, शुगरकेन सोविंग ड्रिलर, ह्वील टिलर व फाइव इन वन टिलर सबसे महत्वपूर्ण हैं।

सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिलर सबसे लोकप्रिय मशीन है। इसका इस्तेमाल अलग-अलग आकार के बीज रोपने में किया जाता है । इसमें अलग-अलग आकार के लकड़ी के रोलर लगे हुए हैं जो अलग-अलग तरह के बीजों को बोने के काम आते हैं । यह फर्टिलाइजर को छींटने व मिट्टी तोड़ने में भी मददगार है। इसका इस्तेमाल करना बहुत आसान है। मशीन स्टेनलेस स्टील से बनी हुई है, इसलिए इसमें मोर्चा लगने की कोई आशंका नहीं है और रखरखाव की जरूरत भी नहीं पड़ती। हम लंबे समय तक इसके चलने की गारंटी भी देते हैं।

ट्रैक्टर के लिए आयरन ह्वील का इस्तेमाल खेत की जुताई के वक्त किया जाता है।

असल में ट्रैक्टर से जुताई करने पर उसमें लगा रबर का टायर टूटने लगता है और इसमें डीजल की खपत भी अधिक होती है। ट्रैक्टर की क्षमता को बरकरार रखने के लिए हर साल टायर बदलना पड़ता है। टायर बदलने से भी खर्च बढ़ जाता है। यह देखते हुए मैंने आयरन ह्वील बटन तैयार किया। इसका इस्तेमाल 20 सालों तक किया जा सकता है। आयरन ह्वील का इस्तेमाल करने से ह्वील को हर साल बदलने की जरूरत नहीं पड़ती है और न ही डीजल की अधिक खपत होती है।

शुगरकेन सोविंग ड्रिलर का इस्तेमाल ट्रैक्टर पर चढ़ा कर किया जाता है। 35 एचपी क्षमतावाले किसी भी ट्रैक्टर पर इसका प्रयोग किया जा सकता है। ट्रैक्टर में लगे हाइड्रोलिक सिस्टम से इस मशीन को जरूरत के मुताबिक ऊपर व नीचे किया जा सकता है। यह स्वचालित मशीन है जिसकी मदद से बहुत आसानी से गन्ने की खेती की जा सकती है।

यह मशीन एक साथ दो कतारों में गन्ने की रोपाई करती है। इसके तहत मशीन पहले 75 सेंटीमीटर की दूरी पर खांचा खींचती है। इसके बाद 37 सेंटीमीटर लंबे गन्ने के पौधे को खांचे में डाल देती है और उसे बंद कर देती है। तत्पश्चात खेत में पानी और खाद डाली जाती है। इस पद्धति से गन्न की अच्छे तरीके से बुआई हो जाती है।

यह मशीन 20-30 प्रतिशत पानी, 40 प्रतिशत खाद की बचत करती है और इससे उत्पादन अधिक होता है क्योंकि गन्ने की बुआई सही दूरी पर होती है।

ह्वील टिलर खेत की जुताई के वक्त मशीन की क्षमता बढ़ाती है।

असल में ट्रैक्टर से जुताई करने पर अगर वह फंस जाए तो जुताई बंद हो जाती है। साथ ही किसानों को ढेला हटाने के लिए हाइड्रोलिक की मदद से उपकरण को ऊपर खींचना पड़ता है। यह प्रकिया दिनभर दोहरानी पड़ती है, जिससे समय की बर्बादी होती है और डीजल भी खर्च हो जाता है।

इस समस्या से निजात के लिए मैंने ह्वील टिलर बनाया है। इसकी दोनों तरफ चक्के हैं, जो ट्रैक्टर की स्पीड को बरकरार रखने में मदद करते हैं।

वहीं, फाइव इन वन टिलर एक बहुद्देशीय उपकरण है जिसका इस्तेमाल खेत में कीटनाशक व फर्टिलाइजर के छिड़काव, बीजारोपण, खुदाई और घास को उखाड़ने में किया जा सकता है। इस मशीन का इस्तेमाल 4 फीट ऊंची फसल के लिए भी किया जा सकता है। इसकी मदद से एक दिन में 20 से 25 एकड़ खेत में काम किया जा सकता है। यही नहीं, इसका इस्तेमाल तब भी किया जा सकता है जब खेत की क्यारियां 4 फीट की दूरी पर हों।

सवाल - ये मशीनें कितनी किफायती हैं और आप उन्हें कहां बेचते हैं ?

जवाब – इन मशीनों का निर्माण इसलिए किया गया है कि छोटे व सीमांत किसानों को मदद मिल सके। ये मशीनें बेहद सस्ती कीमत पर बेची जाती हैं और किसानों को इसकी खरीद पर सब्सिडी भी दी जाती है। मशीन की बिक्री के साथ ही सर्विस भी दी जाती है। हम कर्नाटक में तो इन्हें बेच ही रहे हैं, साथ ही आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में भी इन्हें खरीदा जा सकता है।

हमारे देश में किसान खेती छोड़ रहे हैं और खेत बंजर हो रहे हैं! इसके पीछे एक बड़ी वजह मजदूरों व कृषि उपकरणों की कमी है। अगर किसानों को सही समय पर सही तकनीक मुहैया करायी जाये तो खेती विकसित होगी और देश भी!

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