जानिए क्यों इस इकोनॉमिक्स के टीचर ने पंरपरागत खेती छोड अपनाई बागवानी
: अगर कोई इन्सान दुसरो की भलाई के लिए कोई भी कार्य करने की ईच्छा रखता हो तो वो जरूर ही पुरी होती है। हम बात कर रहे है गुजरात के देवसीभाई हीराभाई पटेल की जो एक हायर सेकेण्डरी स्कुल के टीचर है, और साथ में खेती भी करते हैं।
देवसीभाई कहते हैं, “मैंने इकोनॉमिक्स के साथे एम.ए किया. मैंने सोचा की मेरी पढाई मेरे अलावा दुसरो के भी काम आनी चाहिए. कुछ सालों बाद मेरा यह सपना पुरा हुआ और अब शिक्षा देने के साथ किसानो को प्रेरणा मिले इस लिए मैंने परंपरागत खेती छोड बागबानी खेती अपनाई है।''
नर्मदा केनाल ने बदली किसानो की किस्मत
देवसीभाई बताते है, ''बनासकांठा जिले का आंतरोल गांव जो पाकिस्तान और राजस्थान के बोर्डर से सटा है, यहा की खेती बारीश आधारित थी, लेकिन 2009 मे नर्मदा केनाल का पानी आने से यहा के किसानो की मानो किस्मत बदल गई. अंरडी, बाजरा,जिरा, राई (Mustard) की खेती करने वाले किसान अब बागबानी की फसल लेने के लिए सक्षम है।
खेती का अर्थशास्त्र
पढाई पुरी करने के बाद देवसीभाई अपने गाँव से दुर सायला में सरकारी स्कुल मे टीचर के तौर पर भर्ती हुए, लेकिन दुसरो के लिए कुछ करने की इच्छा तब पुरी हुई जब 2014 में अपने गाँव मे देवसीभाई को नोकरी मिली। आज, देवसीभाई स्कुल टाईम पुरा होने के बाद अपने पिताजी के साथ खेती करते है।
''मेरी शिक्षा का लाभ सिर्फ मेरे विद्यार्थीयों को ही नही बल्कि अन्य लोगो को भी मिलना चाहिए, यह सोच कर मैंने खेती की और ध्यान दिय़ा औऱ अपने पुर्खो की जमीन पर परंपरागत खेती छोड बागबानी फसल लेने का निर्णय कीया, जिससे अन्य किसानो को भी प्रेरणा मिले,” देवसीभाई ने बताया।
देवसीभाई ने अपने 4.5 एकड जमीन मे सरगवा, 1 एकड मे पपाया की खेती है, 1.5 एकड मे मिर्ची और इस के साथ 3 एकड मे अनार की फसल तैयार हो रही है। नर्मदा केनाल के पानी से फसल को काभी लाभ हो रहा है। पानी की बचत हो इस लिए देवसीभाई टपक सिंचाई का उपयोग कर रहे है।
देवसीभाई बताते है,'' बागबानी फसल अपनाने के एक वर्ष बाद 4.5 बीघा जमीन से लगभग रू.6.5 लाख की कमाई हुई और पपाया के उत्पादन से 3 लाख का फायदा हुआ और अभी आने वाले दिनो मे अनार मे फल आने से और पपाया मे ज्यादा फसल आएगी, जिससे और लाभ होगा।''
किसान को क्यों अपनानी चाहिए बागबानी
बागबानी फसल के लाभ के बारे मे देवसीभाई ने कहा, ''अगर मैंने मेरे पास जो जमीन है उसमे परंपरागत फसल अरंडी, बाजरे या जिरा की खेती की होती तो लगभग 1 लाख रुपये का लाभ होता और महेनत भी अधिक करनी पडती लेकिन बागबानी लगाने से मुझे 1 साल मे 8 लाख रुपये मिले, इतनी उपज लेने के लिए मुझे परंपरागत खेती मे 8 साल लग जाते। इस लिए मैं किसानो को कहता हुं, साहस करके खेती में नये-नये प्रयोग करते रहेने चाहिए, जिससे आमदनी बढे और कम खर्च और लागत से अधिक फायदा हो।''
अपने क्षेत्र मे हो रही नई खेती देखने के लिए देवसीभाई के खेत मे आसपास के 25 गाँव से किसान आ रहे है और उसमे से 100 किसान ने परंपरागत खेती छोड बागबानी खेती अपनाई है और यह किसान भी अच्छी आमदनी कमा रहे है।
पद्मश्री किसान गेनाभाई है देवसीभाई के प्रेरणा स्त्रोत
''बनासकांठा के गेनाभाई दिव्यांग होने के बावजूद भी बागबानी खेती मे सफल हुए। अनार की खेती से मशहूर गेनाभाई को सरकारने पद्मश्री से सन्मानित किया है। जो मेरे प्रेरणा स्त्रोत है। दांतीवाडा कृषि युनि.के वैज्ञानिको से भी मुझे काफी मदद मिली,''देवसीभाई पटेल ने बताया।
आरएमएल है सच्चा मार्गदर्शक
आरएमएल टीम का घन्यवाद देते देवसीभाई कहेते है, ''मेरे लिए आरएमएल एप्प बेहद उपयोगी साबित हुई है, अगर फसल मे कोई रोग आने वाला हो या आ गया हो तो इसके लक्षण देखने के लिए मैं आरएमएल एप्प की मदद लेता हुं। आरएमएल के बताए उपायो को ..