सुंदर विचार

in #beautiful7 months ago

आरम्भ गुर्वी क्षयणी क्रमेण
लघ्वी पुरा दीर्घमुपैति पश्चात् |
दिनस्य पूर्वार्धपरार्ध भिन्ना
छायेव मैत्री खलसज्जनानाम् || -भर्तृहरि (नीति शतक )

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भावार्थ - सूर्य के प्रकाश से उत्पन्न छाया दिन के पूर्वार्ध
(सूर्योदय से मध्याहन तक) और परार्ध (मध्याह्न से सूर्यास्त )
में अलग प्रकार की होती है | पूर्वार्ध में पहले वह् बहुत लम्बी
होती है और क्रमशः छोटी होती जाती है | मध्याह्न के पश्चात्
शीघ्र ही वह् पुनः बडी होने लगती है | इसी प्रकार से दुष्ट और
सज्जन व्यक्तियों से की गयी मित्रता भी प्रभावित होती है |

(इस सुभाषित में दुष्ट व्यक्तियों से मित्रता की तुलना दिन के
पूर्वार्ध में उत्पन्न हुई छाया से की गयी है , अर्थात प्रारम्भ में तो
प्रगाढ पर अन्ततः समाप्त हो जाती है | इसके विपरीत सज्जन
व्यक्तियों से मित्रता दिन के उत्तरार्ध में उत्पन्न छाया के समान
प्रारम्भ में तो साधारण होती है परन्तु बाद में प्रगाढ मित्रता में
परिवर्तित हो जाती है | )

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