Amar hutatma swami shrdhanandji 3

in #article6 years ago

While praying for Nanakakand's dive in the ocean of despair, the ultimate God heard him. God of lilah
It's strange When the devotee is dark around darkness
Then his compassion is visible to the devotee.
Appears in the form of light. Munshiram 23 year old young man
Bamboo Bareilly is responsible for preventing nuisance in Dayanand Sabha
Kotwal was on Nankchand. Listening to Maharishi's speech
Kotwal Sahib believed that this unique personality
Will make my son re-believer and my atheist son
All doubts will be overcome. When the house arrived at night, the sad father
Son said to 'Son Munshiram!' A dandy monk has come, big
Scholar and Yogiraj are After listening to his speech, all of you
The suspicions will go away. Walk with me tomorrow '' atheist son's
The reaction was that only knowing Sanskrit is the point of wisdom
Will? Munshiram Maharishi the second day to keep his father's mind
Went to listen to the speech Seeing that divine Aditya idol
Munshiram was devout and when the pastor T.J. Skate and
If two or three other Europeans were eagerly watching, then the reverence and
Also increased I had not heard ten minutes of speech in my mind
He thought - 'This is a strange person that only a Sanskrit
There is such a reasonable argument that the scholars would be stunned.
Lecture was on the Om Namaskar of Om. Of Maharishi
Swamiji while describing the lecture, describing Anandanubhuti
Shraddhananda wrote - He is the spiritual person of the first day ever
can not forget . Even though atheist
Deselecting was the work of the Sage soul.



विषाद के समुद्र में गोता लगते हुए नानकचंद की प्रार्थना को परम कारूणिक परमेश्वर ने सुन लिया । ईश्वर की लीला
विचित्र है । जब उसके भक्त को चारों तरफ अंधकार ही अंधकार
दिखाई देता है तब उसकी करुणा भक्त के परित्राण के लिए दिव्य
प्रकाश के रूप में प्रकट होती है । मुंशीराम 23 वर्ष के नवयुवक
दयानन्द की सभा में उपद्रव रोकने का दायित्व बांस बरेली
के कोतवाल नानकचन्द पर था । महर्षि का भाषण सुनकर
कोतवाल साहब को विश्वास हो गया कि यह अद्वितीय व्यक्तित्व
मेरे पुत्र को पुनः आस्तिक बना देगा और मेरे नास्तिक बेटे के
सब संशय दूर कर देगा । रात को घर आते ही दुःखी बाप ने अपने
बेटे से कहा - ‘बेट मुंशीराम ! एक दण्डी संन्यासी आये हैं, बड़े
विद्वान और योगीराज हैं। उनकी वक्तृता सुनकर तुम्हारे सब
संशय दूर हो जायेंगे । कल मेरे साथ चलना ’’ नास्तिक बेटे की
प्रतिक्रिया थी कि केवल संस्कृत जानने वाला क्या बुद्धि की बात
करेगा? पिता का मन रखने के लिए दूसरे दिन मुंशीराम महर्षि
का भाषण सुनने चला गया । उस दिव्य आदित्य मूर्ति को देखकर
मुंशीराम श्रद्धावनत हो गया और जब पादरी टी.जे. स्काट और
दो-तीन अन्य यूरोपियनों को उत्सुकता से बैठे देखा तो श्रद्धा और
भी बढ़ गई । अभी दस मिनट वक्तृता नहीं सुनी थी कि मन में
विचार किया - ‘यह विचित्र व्यक्ति है कि केवल संस्कृतज्ञ होते
हुए ऐसी युक्तियुक्त बातें करता है कि विद्वान दंग हो जाए।
व्याख्यान परमात्मा के निज नाम ओम् पर था। महर्षि के
व्याख्यान को सुन कर आनन्दानुभूति का वर्णन करते हुए स्वामी
श्रद्धानन्द ने लिखा - वह पहले दिन का आत्मिक आल्हाद कभी
भूल नहीं सकता । नास्तिक रहते हुए भी आत्मिक आल्हाद से
निमग्न कर देना ऋषि आत्मा का ही काम था ।



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