Amar hutatma swami shradhanandji 6
The order of Acharya is being completed.
Munshiram is now swinging in the skies of doubt. Me spiritually
Where do you find peace? Sometimes they go to Arya Samaj, sometimes Brahm
Temple . The devotion of the Brahma Samaj impressed them very much
And read the literature of Brahmin society for 5-6 days. Rebirth
Brahm Samaj from scholars' answers to questions about karmal and
They were not satisfied with Acharya Dayanand with Parsi Scott
Remembrance of the scriptures of Then they take the light of the Arya
Going to society and taking the light of truth,
As soon as he returned, a huge fund was taken. Magha of Samvat 1941
The day of Mass and Aditywar is Munshiram sitting in his room.
And the eighth ocean of Satartha light was opened on the table
is . In such a case, Munshiram's friend Sundar Das entered the room.
And ask - what are you worried, say something definite?
Munshiram replied - The theory of rebirth decided.
Today I can become a member of Arya Samaj with true faith
I am delighted to hear Sunder Das's boundaries
And they went to Arya Samaj with Munshiram.
Arya Samaj ka Deewana
Promoting Arya Samaj along with advocacy
Life has become the goal. Now Munshiram morning
With friends and relatives
Singing hymns of devotion, reverence and devotion to God. Mohalla
And stand in the middle of the street and complete a hymn and
Let's move forward on tune with one voice. Looking at Munshiram
A mother said - 'Poor poor is mystic. Only hymns
Singing and asking nothing. Then the mother moaned.
.
Brother of Take well. "Many goddesses begging them
understand
Only the grains, the money, the dunani, the chaunni, the zodiac would be put into it.
आचार्य का आदेश पूरा हो रहा है।
अभी मुंशीराम संशय के झूले में झूल रहे हैं। मुझे आत्मिक
शांति कहां मिलेगी ? कभी वे आर्य समाज जाते हैं, कभी ब्राह्म
मंदिर । ब्राह्म समाज के भक्तिभाव ने उन्हें बहुत प्रभावित किया
और 5-6 दिन तक ब्राह्मण समाज का साहित्य पढ़ते रहे । पुनर्जन्म
और कर्मफल के प्रश्नों पर ब्राह्म समाजी विद्वानों के उत्तरों से।
उन्हें संतोष नहीं हुआ तब पारसी स्कॉट के साथ आचार्य दयानन्द
के शास्त्रार्थ का स्मरण आया । फिर वे सत्यार्थ प्रकाश लेने आर्य
समाज गये और सत्यार्थ प्रकाश लेकर इस प्रकार हर्ष विभोर होकर
लौटे मानो बड़ा कोष हाथ लग गया हो । संवत 1941 का माघ
मास और आदित्यवार का दिन है मुंशीराम अपने कमरे में बैठे
हैं और मेज पर सत्यार्थ प्रकाश का आठवां समुल्लास खुला पड़ा
है । इतने में मुंशीराम जी के मित्र सुन्दरदास कमरे में प्रवेश करते
हैं और पूछते हैं - किस चिन्ता में हैं, कहिये कुछ निश्चय हुआ ?
मुंशीराम ने उत्तर दिया - पुनर्जन्म के सिद्धांत ने फैसला कर दिया ।
आज मैं सच्चे विश्वास से आर्य समाज का सभासद बन सकता
हूँ ।’’ इस उत्तर को सुनकर सुन्दरदास की प्रसन्नता की सीमा
नहीं रही और वे मुंशीराम को लेकर आर्य समाज चले गए ।
आर्य समाज का दीवाना
वकालत के साथसाथ आर्य समाज का प्रचार करना उनके
जीवन का ध्येय बन चुका है । अब मुंशीराम प्रातःकाल अपने
साथियों के साथ एकतारा लेकर निकलते और आलाप के साथ
वैराग्य, श्रद्धा भक्ति और ईश्वर स्तुति के भजन गाते । मोहल्ले
और गली के बीचोंबीच खड़े होकर एक भजन पूरा करते और
एकतारा पर स्वर छेड़ते आगे चल देते । मुंशीराम को देख कर
एक माता ने कहा - 'बेचारा बड़ा भला फकीर है । केवल भजन
गा रहा है और मांगता कुछ नहीं । फिर माता आवाज लगाती।
।
के भाई ! खैर ले जा ।’’ कई देवियां उन्हें भिखमंगा कर
समझ
ही अनाज, पैसा, दुअन्नी, चौअन्नी, आंचल में डाल जाती ।