Amar hutatma swami shradhanand 4
But Munshiram's suspicion is still not far. Their
The reaction was that if God and the Vedas were to be blamed
Dayanand Swami can give her daughter-in-law if any scholar is unimaginable
Tactics and arguments are not going to face power.
Munshiram was very proud of his skepticism.
One day, protesting against the existence of God. Five minutes
In the Question Hour, there was such an alarm that the tongue was stamped on.
Munshiram said, 'Maharaj! Your logic power is strong
is . You kept me quiet but did not believe it
That God has a celebrity (existence). "Second time again
Preparations were made, but the result was reversed. The third
The hair was completely prepared, but the argument was overturned again
Found. Munshiram again gave the last reply - 'Maharaj!
Your argument power is strong, you shut me up
But he did not believe that there is a person of God. '
Maharaj first laughingly said - 'Look! You question
I did the answer. It was a matter of speculation. When i said this
Was that I believe in your God? your's
Faith in God will be at that time when the Lord Himself will
Will make the believers. '
Between the lines of gentleness and distraction
Now Munshiram got stuck in a tug of war between Bhadrata and Durrit.
On one hand, Munshiram has the strong power of lust
He is pulling on his side and on the other hand Maharishi's strength
On this side of the side, Munshiram Vikal is in this tug of war.
Whore
After this Munshiram drank poisonous liquor. Wine
Insisted so much that the foot did not fall on the ground. Friend's
Together they went to the prostitute's house. Seeing the son of Kotwal Sahib
All got up and stood up. Ordered the big barber of the house
That mujra be decorated To give a rupee to his navy
She was sitting. It's late in coming. Do not know Munshiram's mouth
What did you get from All the house started shaking. Knight
Came and saluted. He extended his hand to apologize.
And Munshiram Napaak came down to say, nepak.
Hearing the speech of Munshiram Maharishi, he became fascinated but
The subject is not out of terrible waves of lust
Sin sagar
Giving up
Honey bees
The difference which exploits the heat by fertilizing the urine
It has been five years since Maharshi appeared. My conscious mind
But there is a possession of subjects and in the subconscious mind Dayanand sat
is . Mahasmar is split between the two. Meat of the subject
Munshiram on his side with alcohol, poetry, lust ropes
. Are pulling Munshiram is sitting in a terrible river of doubt.
At the age of 28 (Sanvat 1941), Jalandhar began to celebrate the festivities of visiting friends for the examination of Lahore Vakatal
परन्तु मुंशीराम का संशय अभी भी दूर नहीं हुआ । उनकी
प्रतिक्रिया थी कि यदि ईश्वर और वेद के ढकोसले को पण्डित
दयानन्द स्वामी तिलांजलि दे दे तो कोई भी विद्वान उनकी अपूर्व
युक्ति और तर्कना शक्ति का सामना करने वाला न रहे।
मुंशीराम को अपने नास्तिकपने पर बहुत अभिमान था ।
एक दिन ईश्वर के अस्तित्व पर आक्षेप कर डाले । पांच मिनट
के प्रश्नोत्तर में ऐसे घिर गये कि जिह्वा पर मुहर लग गई।
मुंशीराम ने कहा - ‘महाराज ! आपकी तर्कना शक्ति बड़ी तीक्ष्ण
है । आपने मुझे चुप तो कर दिया परन्तु यह विश्वास नहीं दिलाया
कि परमेश्वर की कोई हस्ती (अस्तित्व) है।’’ दूसरी बार फिर
तैयारी कर के गयेपरन्तु परिणाम पूर्ववत ही निकला । तीसरी
बाल फिर पूरी तैयारी कर के गया, परन्तु तर्क को फिर पछाड़
मिली | मुंशीराम ने फिर अन्तिम उत्तर वही दिया - 'महाराज!
आपकी तर्कना शक्ति बड़ी प्रबल है, आपने मुझे चुप तो कर दिया
परन्तु यह विश्वास नहीं दिलाया कि परमेश्वर की कोई हस्ती है।’
महाराज पहले हंसेफिर गंभीर स्वर से कहा - ‘देखो ! तुमने प्रश्न
किये मैंने उत्तर दियेयह युक्ति की बात थी । मैंने कब यह कहा
था कि मैं तुम्हारा परमेश्वर पर विश्वास करा ढूंगा। तुम्हारा
परमेश्वर पर विश्वास उस समय होगा जब वह प्रभु स्वयं तुम्हें
विश्वासी बना देंगे ।'
भद्रता और दुरित के पाटों के बीच में
अब मुंशीराम भद्रता और दुरित की रस्साकशी में फंस गये ।
एक तरफ विषय वासना के असुर की प्रबल शक्ति मुंशीराम को
अपनी तरफ खींच रही हैं और दूसरी तरफ महर्षि की बलिष्ठ
भुजाएं अपनी तरफ इस रस्साकशी में मुंशीराम विकल हैं ।
वेश्या के कोठे पर
इसके बाद मुंशीराम ने फिर जहरीली शराब पी । शराब ने
इतना जोर दिया कि पांव जमीन पर नहीं पड़ता था । मित्र के
साथ वेश्या के घर जा पहुंचे । कोतवाल साहब के पुत्र को देखकर
सब सलाम करके खड़ी हो गई । घर की बड़ी नाई को हुक्म दिया
कि मुज़रा सजाए जाए । उसकी नौंची के यहां कोई रुपया देने
वाला बैठा था । उसके आने में देर हुई । न जाने मुंशीराम के मुंह
से क्या निकला । सारा घर कांपने लगा । नौंची घबराई हुईदौड़ी
आई और सलाम किया । उसने क्षमा मांगने के लिए हाथ बढ़ाया।
और मुंशीराम नापाक, नापाक कहते हुए नीचे उतर आए।
मुंशीराम महर्षि का भाषण सुनकर मोहित तो हो गए परन्तु
विषय वासना की भयंकर लहरें से उसे बाहर नहीं
पाप सागर
निकलने दे रही ।
मधु मरी लबालब आती प्यालों की मालाएं
उधरों को सिंचित करके जो शोषित करती अन्तर को
महर्षि के दर्शन किये पांच वर्ष हो गए हैं । मेरे चेतन मन
पर विषयों का आधिपत्य है और अवचेतन मन में दयानन्द बैठा
है । दोनों के बीच महासमर छिड़ा हुआ है । विषयों के असुर मांस
मदिरा, शायरी, वासना की रस्सियों से मुंशीराम को अपनी तरफ
। खींच रहे हैं । मुंशीराम संशय की भयंकर नदी में बहे जा रहे हैं ।
28 वर्ष की अवस्था में (संवत 1941) जालंधर से लाहौर वकालत की परीक्षा के लिये जाने के उपलक्ष्य में दोस्तों की फिर दावतें शुरू हो गई